धर्म

कब है देवशयनी एकादशी? देवशयनी एकादशी का महत्व

हरिशंकर मिश्रा, रीवा : पंचांग के अनुसार, 16 जुलाई मंगलवार को रात में 8 बजकर 34 मिनट से एकादशी तिथि का आरंभ होगा और 17 जुलाई 9 बजकर 3 मिनट तक एकादशी तिथि रहेगी। देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को रखा जाएगा। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी 18 जुलाई को किया जाएगा।

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी को लेकर विभिन्न मान्यताएं हैं। जब भगवान विष्णु शंखचूर के साथ युद्ध करते हुए थक गए थे तो सभी देवताओं से भगवान विष्णु से प्रार्थना की आप आराम कीजिए और कुछ समय के लिए शयन में चले जाएं। भगवान विष्णु देवताओं की प्रार्थना पर चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। दूसरी मान्यता यह है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया था कि वह हर साल चार महीने के लिए पाताल लोक में आकर वामन रुप में वास करेंगे। इसलिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं वामन रुप में पाताल में वास करते हैं.

देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु 4 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। बता दें कि साल में कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं। वैसे तो सभी एकादशी तिथियों का अपना एक अलग महत्व है। लेकिन, देवशयनी एकादशी को बाकी एकादशियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। इसी के साथ देवशयनी एकादशी के दिन देवता गण भी व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास का आरंभ हो जाता है। इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं होते हैं। क्योंकि, इन चार महीनों तक मंगल कार्यों में भगवान विष्णु शामिल नहीं हो पाते हैं। इसलिए शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि जैसे मंगल कार्य इस दौरान आयोजित नहीं होते हैं।

व्रत का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ: 16 जुलाई, 2024, रात 8:33 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 17 जुलाई, 2024, रात 9:02 बजे
निशीथ काल पूजा मुहूर्त: 17 जुलाई, 2024, रात 1:26 बजे से 2:55 बजे तक
पारण का समय: 18 जुलाई, 2024, सूर्योदय से प्रारंभ
पारण का उत्तम समय: 18 जुलाई, 2024, सुबह 6:14 बजे से 9:02 बजे तक

देवशयनी एकादशी का व्रत रखने के धार्मिक लाभ

आध्यात्मिक उन्नति: मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होता है.
मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होना: इस व्रत के पालन से मोक्ष की ओर अग्रसर होने में सहायता मिलती है.
ग्रह-दोषों का शमन: ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं.
शारीरिक स्वास्थ्य लाभ: शरीर स्वस्थ रहता है और रोगों से मुक्ति मिलती है.
सांसारिक सुख: धन, वैभव और सुख-शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related News