अभी व्हाटसप् पर एआई लॉच हुआ मैंने चलाया मगर ऐसा लगा जैसे बहुत एआई में लगाना छोड़ दिया। बहुत सारी कमियों के साथ एआई भारत में लॉंच हुआ। लगता है कंपनियाँ समय से पहले ही एआई को जारी कर रही हैं, भले ही आंशिक रूप से कर रही हों, इसके पीछे कारण यह हो सकता है कि कंपनियां चाहती हैं कि लोग इस तकनीक का उपयोग करके एआई को चलाना सीख जाऐं। क्योंकि यदि सभी फीचर यदि एआई में दे दिये तो बहुत कुछ कन्फ्यूजन वाला हो जाएगा और जटिल भी हो जाएगा। यूं समझ लीजिए कि यह एआई की पहली क्लास है शुरू हुई है।
जब कंपनियाँ फ़ोन जैसे नए तकनीकी उत्पादों का लांच करती थीं, लांचिंग के समय बताया जाता है कि उस उत्पाद में कैसे कैमरे लगाएं गये हैं उसकी स्क्रीन कितनी चमकदार है, आदि-आदि। उसी तरह एआई का छोटा रूप देकर लगता है मेटा एआई हमें कंपनियाँ संभावित भविष्य का पूर्वावलोकन करने को बात रही हैं, कंपनियां ऐसी तकनीकों का प्रदर्शन कर रही हैं जो केवल सीमित, नियंत्रित परिस्थितियों में विकसित और काम कर रही हैं।
फिलहार में एआई एक खेल जैसा ही है और बहुत छोटे रूप में है। यूं कहो कि अभी एक धोखा है जैसा कि हमें बताया गया वैसा इसमें कुछ भी नहीं है। नया चैटजीपीटी अपनी अधिकांश नई सुविधाओं के बिना जारी किया गया था, जिसमें बेहतर आवाज़ भी शामिल है।
एपल को खतरा महसूस हुआ एआई से-
वहीं दूसरी ओर एपल इस एआई तकनीक को खुद के प्रोडक्ट्स में जोड़ने से इंकार करती है। एपल को लगता है कि अगर मेटा की एआई टेक्नोलॉजी को अपने डिवाइस से जोड़ती तो उसकी रेपुटेशन को नुकसान पहुंच सकता है। एपल के मना करने के बावजूद मेटा अपने एप्लिकेशंस- इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप, फेसबुक और मैसेंजर के लिए खुद के एआई पर भरोसा बनाये हुए हैं. अरबों लोगों इन ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में मेटा ने मेटा एआई को भारत में लॉन्च किया है. एपल ने ऐलान किया कि उसने डिवाइस में एआई फीचर्स देने के लिए ओपनएआई के साथ पार्टनरशिप की है. आईफोन जैसे डिवाइस में चैटजीपीटी का सपोर्ट मिलेगा. इस सब से सीखने वाली बात यह है कि हमें, उपभोक्ताओं के रूप में, अतिश्योक्ति का विरोध करना चाहिए और एआई के प्रति एक धीमा, सतर्क दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। हमें किसी भी अधूरी तकनीक पर तब तक अधिक नकदी खर्च नहीं करनी चाहिए जब तक कि हमें यह प्रमाण न मिल जाए कि उपकरण विज्ञापित के अनुसार काम करते हैं।
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क्या है एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), एआई का कैसे उपयोग करें-
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को हिन्दी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहते हैं। आमतौर पर हम मनुष्यों को किसी दृश्य को बनाने के लिए कम्प्यूटर ग्राफिक्स प्रोग्राम का उपयोग करना पड़ता थ, परंतु अब एआई प्रोग्राम आपने विचारों के हिसाब से अथवा आपके बताये हुए प्रोम्प्ट के हिसाब से आपको लगभग वही दृश्य बनाकर दे देगा। एआई कार्यक्रम हर समय उपलब्ध हैं, जबकि मनुष्य दिन में 8 घंटे काम करते हैं।
उसी प्रकार किसी फीचर अथवा आर्टिकल को भी आपके चुने हुए विषय के अनुसार बनाकर कुछ सेंकड़ों में बनाकर दे देगा। हांलांकि एआई भी गूगल का ही उपयोग करके आपको सामग्री प्रदान करता है परंतु आपका समय इससे बच जाता है।
क्या एआई मनुष्य जाति के भविष्य पर मंडराता खतरा है
एआई के आने के बाद हमें लगता है कि हम आराम से अपने कमरे में बैठकर कुछ सीखने में बिताऐंगे और आनंद लेंगे। हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अभी भी भाषा प्रसंस्करण, रचनात्मकता, समस्या-समाधान और सूक्ष्मता समझ जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़ना है। यदि आप चिंतित हैं कि रोबोट आपकी नौकरी ले लेंगे, आपको बेरोजगार कर देंगे तो अपने आपको अपडेट करना पड़ेगा। हमको खुद में वे गुण विकसित करने पडेंगे जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि आप भविष्य में रोजगार के योग्य होंगे। हांलांकि अभी की स्थिति देखकर लगता है कि यह भविष्य में लिए चिंता का विषय है। कोई व्यक्ति जितना समय खुद को अपडेट लगाने में लगाया कि उतने समय में एआई कई मीलों आगे जा चुका होगा। इसलिए मनुष्य जाति के लिए हर समय के लिए तैयार रहना पड़ेगा।
मानव बुद्धि का असली विकास धीमा हो सकता है। जब हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर ज्यादा निर्भर करते हैं, तो हमें अपनी समस्याओं का हल ढूंढने और सोचने की क्षमता कम हो सकती है। एआई समाज में गहरे रूप से प्रवेश करती है और व्यक्तिगत डेटा का संग्रह करती है, जिससे व्यक्तिगत गोपनीयता और सुरक्षा की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। स्वतंत्रता, अन्याय, और न्याय। बिना उचित ध्यान दिए, ऐसे सिस्टम मानव समाज के लिए हानिकारक हो सकते हैं। ससे समाज में संतुलन को खतरा हो सकता है। इन समस्याओं का समाधान करने और एआई के विकास में संभावनाओं और चुनौतियों को समझने की जरूरत है.
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