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किशोरावस्था के दौरान होने वाले सामान्य बदलाव

हर मां-बाप के लिए उसका बच्चा हमेशा बच्चा ही रहता है। वो उसको बड़ा होते देखते हैं मगर उनमें बड़प्पन को बढ़ते हुए नहीं देख पाते हैं। मां-बाप को लगता है कि उनके बच्चों की किशोरावस्था केवल वयस्क जैसे शारीरिक बदलाव जैसे, पीरियड्स, प्यूबिक हेयर और चेहरे के बालों से जुड़ी होती है। लेकिन यह केवल युवावस्था के सबसे अधिक दिखने वाले संकेतों में से एक हैं।

आखिर किशोरावस्था है क्या पहले यह समझते हैं।


किशोरावस्था शब्द को जब परिभाषित किया जाता है तो इसका अर्थ निकलकर आता है -परिपक्वता की ओर बढ़ना. किशोरावस्था कोई समय अवधि नहीं है बल्कि एक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया अधिक गतिशील है और निरंतर भी है। यह अगोचर रूप से चलती रहती है। यह मानव विकास की एक महत्वपूर्ण अवधि है। जो लोग इसे विकासात्मक दृष्टिकोण के रूप में देखते हैं। जब हार्मोनल और विकास प्रक्रिया होती है। यह तब चिह्नित होता है जब प्रजनन अंग काम करना शुरू करते हैं. जब किशारों में शारीरिक विकास 17 या 19 वर्ष की आयु में लगभग बंद हो जाता है इस अवधि को सामाजिक तौर पर देखे तो किशोर अपने विपरीत लिंग में रूचि लेने लगता है।

किशोर वह व्यक्ति होता है जो एक बच्चे की सामाजिक स्थिति से आगे निकल गया है लेकिन उसे वयस्क के सामाजिक विशेषाधिकार नहीं दिए गए हैं। वह अब बच्चा नहीं है लेकिन अभी तक एक आदमी भी नहीं है।

क्यों आते हैं किशोरावस्था में बदलाव –
बच्चा जब बढ़ने लगता है खासतौर पर 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच तो उसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से व्यक्ति में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं और यह बदलाव हार्मोनों का स्तर में बदलाव के कारण हो सकते हैं।

किशोरावस्था में क्या-क्या सामान्य बदलाव आते हैं –
भावनात्मक बदलाव : किशोरों में चाहे वो लड़का हो अथवा लड़की दोनों में सबसे पहले उनमें भावनात्मक बदलाव आना शुरू होते हैं। इसको हम मानसिक बदलाव भी कह सकते हैं। इस बदलाव में वे अपने विचारों में बदलाव देख सकते हैं। जो विचार उनके बचनप में थे अब वो जवानी की तरफ लेके जाते हैं। किशोर अपने आप को जानने की कोशिश करते हैं। वे अपनी समझदारी, संवेदनशीलता, और सामर्थ्य के साथ अपनी भावनाओं को पहले से ज्यादा व्यक्त करने की कोशिश करते हैं।

मानसिक बदलाव : बच्चे जब किशोरावस्था की ओर जाते हैं तो उनकी मानसिकता में भी बदलाव आना शुरू हो जाता है। अब वे चीजों को वैसे नहीं देखते जैसे वो बचपन में देखते थे। अब उनमें चीजों को देखने समझने में उनके मानसिक संतुलन में बड़ा परिवर्तन आता है। जब मानसिक बदलाव आते हैं। तो उनमें अवसाद, चिंता, स्वास्थ्य संबंधी परिवर्तन को लेकर उनमें असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है।

शारीरिक बदलाव : यह सबसे अहम समय होता है जब लड़के और लड़कियों में हार्मोनल परिवर्तन होता है, और जिस कारण उनके शारीरिक गुणों में बदलाव आना शुरू होते हैं। इन बदलाव के अंतर्गत उनकी ऊंचाई, वजन, लिंगांश की वृद्धि, और विकास के अन्य पहलू शामिल होते हैं। वृद्धि का अर्थ है शारीरिक वृद्धि के संबंध में किसी व्यक्ति में सामान्य परिवर्तन। ये परिवर्तन हार्मोनल गतिविधि के परिणामस्वरूप होते हैं। इस समय लोगों के जीवन काल में किसी भी अन्य अवधि की तुलना में विकास और परिवर्तन अधिक देखा जाता है। इन शारीरिक बदलाव के कारण हो सकता है वो थोड़ी चिड़चिड़े या अपने आप में खो जाने वाले हो जाएं। परंतु यह चिंता का विषय नहीं है बल्कि किशोरों को समझने की जरूरत है।

सामाजिक बदलाव : किशोरावस्था में एक और बदलाव है जो मां-बाप को चिंता में डाल देता है और वो किशारों का सामाजिक जुड़ाव। किशोर अपने स्कूल के मित्र एवं परिवार आदि इस उम्र मिलना जुलना अधिक कर देते हैं। वह अपने साथियों के साथ जुड़ता है और उनके साथ बहुत मजबूत संबंध और बंधन रखता है। यह अनुरूपता आपको कभी-कभी अजीब लग सकती है, खासकर कपड़े पहनने, दिखने, बोलने, यौन जीवन, शिष्टाचार, संगीत में, साथियों के समूह के व्यवहार के साथ तालमेल बिठाने में। इस उम्र में किशोर अपने मां-बाप के नजदीक कम रहते हैं और मित्रों के ज्यादा पास एवं देर तक रहते हैं। जिस कारण उनमें सोच-विचार का बदलाव आता है। यह बदलाव उनको अपने मां-बाप के विचारों से थोड़ा दूर कर सकते हैं परंतु यह भी डराने वाला नहीं होता बल्कि किशोर को अपने विचारों का विस्तार करने का अच्छा तरीका होता है। इस समय माता-पिता शिकायत करते हैं कि डेटिंग, नृत्य, दूसरे लिंग में रुचि, और अधिक परिपक्व कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन पहनना अब पहले की तुलना में जल्दी शुरू हो रहा है।

स्वतंत्रता बदलाव : किशोरों की इस उम्र में उनके विचार बदलते हैं। इस उम्र में वो अपने परिवार के अलावा अपने मित्रों से मिलते हैं एवं मित्रों के मित्र से मिलते है। जब तक वो बच्चे तो उन पर मां-बाप की नजर रहती थी। हांलांकि मां-बाप की नजर अब भी उन पर होती है परंतु किशोर अब इस बंदिश से बचना चाहते हैं। किशोर इस उम्र में आकर अपनी स्वतंत्रता चाहते हैं। वो चाहते हैं कि वो किसी मित्र के पास जाएं तो उन पर नजर न रखी जाए अथवा समय पाबंदी भी न रखी जाए। वह इस बात पर नियंत्रण रखता है कि उसे क्या पहनना है, कहाँ जाना है, कब जाना है और कब वापस आना है। माता-पिता की ओर से बहुत कम या कोई पर्यवेक्षण और नियंत्रण नहीं होता है। लेकिन अगर माता-पिता किशोर पर निरंकुश नियंत्रण रखते हैं, तो वह अपने माता-पिता के उनके प्रति कठोर रवैये के खिलाफ विद्रोह कर सकता है।

इन बदलावों के साथ, किशोरावस्था एक समय होता है जब व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में स्वीकार करने और समझने के लिए तैयार होता है। यह अवसर प्राप्त करने का समय भी होता है, जो उसके भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये सभी बदलाव स्वाभाविक और सामान्य होते हैं, और किशोरावस्था के माध्यम से व्यक्ति का पूर्ण विकास होता है।
मां-बाप को किशोरों को उनकी किशोरवस्था में समझने की जरूरत है।

मां-बाप अपने किशोर की भावनाओं को समझें और उन्हें उनके विचारों और दृष्टिकोण का समर्थन दें। उनके साथ सकारात्मक रूप से समय बिताने का प्रयास करें। उनके विचारों को समझते हुए उनके तालमेल बैठाए। उनकी पसंदीदा गतिविधियों और समस्याओं को समझने का प्रयास करें। उनकी स्वतंत्रता और जिम्मेदारी की महत्वपूर्णता समझाएं। अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करें, जैसे नियमित व्यायाम, स्वस्थ आहार, और स्वस्थ जीवनशैली। बिना बात अपनी सलाह किशारों पर न थोपें। जब आप सलाह देते हैं, तो सही समय पर दे ताकि उन्हें आपकी सलाह की महत्वपूर्णता और उनकी भावनाओं का सम्मान महसूस हो। इन सलाहों का पालन करने से माता-पिता अपने किशोर के लिए साथी और मार्गदर्शक बन सकते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक विकास सुनिश्चित हो सके।

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