हलहारिणी अमावस्या: आषाढ़ महीने में पड़ने वाली अमावस्या को आषाढ़ अमावस्या या हलहारिणी अमावस्या कहा जाता है. स्नान, दान और धार्मिक कार्यों से लेकर पितरों के श्राद्ध और तर्पण आदि के लिए यह दिन काफी महत्वपूर्ण होता है. हलहारिणी अमावस्या पर किए गए पूजा-पाठ और धूप-ध्यान से अक्षय पुण्य मिलता है। ऐसा पुण्य जिसका असर जीवनभर बना रहता है।
आषाढ़ मास की अमावस्या पर भगवान विष्णु, महालक्ष्मी, शिव जी और गणेश जी का अभिषेक करें। शुक्रवार और अमावस्या के योग में शुक्र ग्रह के लिए भी विशेष पूजा-पाठ करनी चाहिए। पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करेंगे तो घर पर पवित्र नदी के स्नान का पुण्य मिल सकता है। स्नान के बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं।
ऐसे कर सकते कर सकते हैं पूजा-पाठ : घर के मंदिर में गणेश पूजन के बाद शिव-पार्वती, महालक्ष्मी और विष्णु जी का पूजन करें। देवी-देवता की प्रतिमा का जल से, फिर केसर मिश्रित दूध से, पंचामृत से और फिर जल से अभिषेक करें। देवियों को को लाल चुनरी ओढ़ाएं। अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनके निमित्त तर्पण, श्राद्ध और दान करना चाहिए. इससे पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. अमावस्या पर पितरों के लिए धूप-ध्यान खासतौर पर करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि के स्वामी पितर देवता माने गए हैं। मान्यता है कि आज धूप-ध्यान करने से पितरों को तृप्ति मिलती है। घर-परिवार के मृत सदस्यों को पितर देव माना जाता है।
सुबह का समय देवी-देवताओं की पूजा के लिए श्रेष्ठ होता है। मृत सदस्य यानी पितरों के लिए धूप-ध्यान करने के लिए दोपहर का समय सबसे अच्छा माना जाता है। दोपहर में पितरों को धूप देने के लिए गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी डालकर धूप दें। हथेली में जल लें और अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें। इस दौरान पितरों का ध्यान करते रहना चाहिए।
आज ऐसा कोई काम न करें, जिससे पूर्वज नाराज हों और आपको पितृदोष का सामना करना पड़े.
भूलकर भी न करें ये काम:-
- आज के दिन पितरों को भला-बुरा न कहें और ना ही किसी बात को लेकर उन्हें कोसे.
- कुत्ता, गाय और कौवे को किसी प्रकार का कष्ट न दें.
- मांस-मदिरा आदि के सेवन न करें।
- किसी के साथ वाद-विवाद न करें।
- क्रबिस्तान, श्मशान या सुनसान जगहों पर अकेले न जाएं।
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