भारतीय आयुर्वेद के कई महान ऋषियों और चिकित्सकों ने भारत को विशेष शिक्षा और ज्ञान दिया है। आयुर्वेद की किसी पहचान की जरूरत नहीं है वो अपने आप में एक पहचान है। भारत से उत्पन्न एक प्राचीन स्वास्थ्य प्रणाली है, जिसका इतिहास बहुत पुराना है। आयुर्वेद, वर्तमान का हिस्सा नहीं है बल्कि भारत की प्राचीन भूमि में इस का विस्तार है परंतु किन्ही कारणों से आज आयुर्वेद कहीं गुम हो गई परंतु आयुर्वेद की जड़ें हज़ारों साल पहले की हैं। यह वेदों के नाम से जाने जाने वाले पवित्र ग्रंथों से निकलता है, जहाँ ऋषियों ने जीवन के रहस्यों में गहन अंतर्दृष्टि की तलाश की। तो आज हम जानेगें कि Who are the famous rishis of Ayurveda?
भारतीय आयुर्वेद के प्रमुख पांच ऋषि कौन हैं।
1. चरक:
चरक आयुर्वेद के सबसे प्रमुख और सर्वश्रेष्ठ शास्त्रकार माने जाते हैं। चरक कुषाण राज्य के राजवैद्य थे. आचार्य चरक आयुर्वेद की जनक माने गए हैं। उन्होंने “चरक संहिता” नामक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक ग्रंथ लिखा, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को व्यवस्थित और व्यापक रूप से प्रस्तुत करता है।
2. सुश्रुत:
सर्जरी के पितामह महर्षि सुश्रुत प्राचीन भारत के जाने माने सर्जन थे। उन्होंने “सुश्रुत संहिता” नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा, जो शल्य चिकित्सा और शरीर विज्ञान पर केंद्रित है। सुश्रुत संहिता में लगभग 300 तरह की सर्जिकल प्रक्रियाओं की जानकारी मौजूद है। उनके कार्यों से भारतीय चिकित्सा विज्ञान को विश्वस्तरीय मान्यता मिली। आज से लगभग 3 हजार साल पहले प्राचीन भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने पहली बार नाक की सर्जरी की थी।
3. वाग्भट:
वाग्भट एक महान आयुर्वेदिक विद्वान थे, जिन्होंने “अष्टांग हृदय” और “अष्टांग संग्रह” नामक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। उनका योगदान आयुर्वेद की व्यवस्था और प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण रहा। अष्टांग संग्रह ग्रन्थ में महर्षि वाग्भट नें प्रारंभ में ही आयुर्वेद आठ मुख्य अंगों की चर्चा की है जिसपर महर्षि वाग्भट के अलावा महर्षि आत्रेय, महर्षि पुनर्वसु, महर्षि सुश्रुत आदि सहित कई अन्य ऋषियों नें भी बहुत काम किया है |
अष्टांग संग्रह ग्रन्थ में आठ अंग : कायचिकित्सा, बालरोग, भूत विद्या, शालाक्य तंत्र, शल्य तंत्र, अगद तंत्र, जरा तंत्र एवं वाजीकरण तंत्र।
4. भावमिश्र:
प्राचीन भारतीय औषधि-शास्त्र का अन्तिम आचार्य माना जाता है। भावमिश्र एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक लेखक थे, जिन्होंने “भावप्रकाश निघंटु” नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा। यह ग्रंथ औषधीय पदार्थों के वर्गीकरण और गुणों पर केंद्रित है और आयुर्वेद में एक प्रमुख संदर्भ ग्रंथ है।
5. भारद्वाज:
ऋक्तन्त्र के अनुसार, ये ब्रह्मा, बृहस्पति और इन्द्र के बाद चौथे व्याकरण प्रवक्ता थे। भारद्वाज के पिता देवगुरु बृहस्पति और माता ममता थीं। महाभारत की कथा के अनुसार द्रोणाचार्य महर्षि भारद्वाज के पुत्र हैं। ऋषि भारद्वाज ने ‘यंत्र-सर्वस्व’ नामक महान ग्रंथ की रचना की।
इन महान आयुर्वेदिक ऋषियों और चिकित्सकों ने भारतीय चिकित्सा परंपरा को समृद्ध और विकसित किया है। उनके कार्यों ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को आयुर्वेद की गहरी समझ प्रदान की है।
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