कब है गणेश चतुर्थी : गणपति बप्पा का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि को हुआ था, इसलिए उस तिथि पर गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. उस दिन गणपति स्थापना करके व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं.
गणेश चतुर्थी मुहूर्त : चतुर्थी तिथि 06 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगा और 07 सितंबर को शाम 05 बजकर 37 मिनट तक रहेगी. गणेश चतुर्थी के दिन मध्याह्न गणपति पूजा मुहूर्त सुबह 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 01 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। पूजन की कुल अवधि 02 घंटे 31 मिनट है।
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश का महत्व
गणेश चतुर्थी का महत्व हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिदाता’ के नाम से जाना जाता है। वे आपके जीवन में आने वाले सभी विघ्नों को दूर करते हैं और सफलता, सुख, और संपत्ति की वरदान देते हैं। भगवान गणेश के आगमन के साथ ही सभी बुराईयों और दुखों का नाश होता है और सफलता की प्राप्ति होती है।
गणेश चतुर्थी पर गणेश उत्सव कैसे मनाएं?
- घर में अपने प्यारे भगवान गणेश की एक सुंदर मूर्ति स्थापित करें।
- गणेश जी के सामने एक कलश को शुद्ध जल से भर दें। साथ ही केला, आम, अनार या कटहल जैसे फूल और फल चढ़ाएं।
- सुपारी का एक टुकड़ा, 1 या 25 पैसे के सिक्के, हल्दी पाउडर, इत्र का तेल, 5 पान के पत्ते, नारियल लें।
- नारियल और पान के पत्तों पर हल्दी लगा लें।
- चावल के दानों के ऊपर एक सुपारी रखें और सुपारी पर एक सिक्का रखें।
- इसके ऊपर गणपति की मूर्ति रखें।
- “गणपति बप्पा मोरिया” का पाठ करें।
- मूर्ति की स्थापना के साथ पूजा शुरू होती है।
- अब 5 पान के पत्ते फैलाएं।
- पान के हर पत्ते के ऊपर सुपारी का एक टुकड़ा रखें, फिर हल्दी डालें।
- गणेश जी को मुकुट, माला, कंगन, वस्त्र भेंट करें।
- गणेश जी को 21 दूर्वा घास के पत्ते, 21 मोदक और 21 फूल चढ़ाएं। संख्या 21 का अर्थ है – धारणा के पांच अंग, पांच कर्म अंग, पांच महत्वपूर्ण वायु श्वास (प्राण), पांच तत्व और मन।
- गणेश जी के माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाएं।
- दीया, धूप और अगरबत्ती से आरती की थाली तैयार करें।
- भगवान गणेश को समर्पित 108 नामों का पाठ करें।
- गणेश जी की आरती गाएं।
- अंत में, भगवान गणेश से उनकी कृपा बनी रहे इसके लिए प्रार्थना करें और गणेश जी का आशीर्वाद लें।
भगवान गणेश को प्रसन्न करने के तरीके
- दूर्वा से करें पूजा- भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए गणेशोत्सव के दौरान रोजाना उन्हें दूर्वा अर्पित करें।
- मोदक का भोग- मोदक भगवान गणेश को अत्यंत प्रसन्न है। इन दिनों में भगवान गणेश से विशेष आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मोदक का भोग जरूर लगाएं।
- दीपक जलाएं- भगवान गणेश के समक्ष रोजाना घी का दीपक लगाएं और उनसे अपने जीवन में आ रहे अंधेरे को दूर करने की प्रार्थना करें।
- सिंदुर अर्पित करें- भगवान गणेश को सिंदुर अर्पित करें। इससे जीवन में भाग्योदय होता है।
गणेश की आराधना सबसे सरल
गणेश जी की मूर्ति के लिए सिर्फ़ मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को गणेश का रूप देकर की गई पूजा-आराधना का पूर्ण फल मिल जाता है। मिट्टी न मिल पाए तो हल्दी की गांठ से भी गणेश बन जाते हैं। नारद पुराण में हल्दी के गणेश को स्वर्ण गणेश के समान प्रभावशाली माना गया है।
प्रतिमा न मिल पाए तो पूजा की सुपारी में भी गणपति की स्थापना की जा सकती है। श्रीगणेशाय नमः बोलते हुए सिर्फ़ रोली का छींटा, चावल के दो दाने, गुड़ और बताशे से ही इनकी पूजा हो जाती है। इनकी सरल पूजा में भी अगर कोई ग़लती हो जाए तो भी ईशकोप का भय नहीं होता।
भगवान गणेश का रहस्य एवम् भगवान गणेश के विभिन्न रूपों का वर्णन
गणेश शब्दका अर्थ है – गणोंके स्वामी। हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और अन्तःकरणचतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार) – इनके पीछे जो शक्तियाँ हैं, वे चौदह अधिष्ठात्री देवता कहे जाते हैं। इन देवताओंके मूल प्रेरक हैं भगवान गणेश।
अहं विष्णुश्च रुद्रश्च ब्रह्मा गौरी गणेश्वरः ।
इन्द्राद्या लोकपालाश्च ममैवांशसमुद्भवाः ॥
गणेशतत्त्व, विष्णुतत्त्व, शिवतत्त्व इत्यादिमें भी तत्त्वतः परस्पर भेद नहीं है। गौरीनन्दन, गिरिजानन्दन, शिवतनय इत्यादि नामों को सार्थक करते हुए जो आदि तथा अन्त से परे हैं, वह हैं भगवान गणेश। वे अजन्मा, अनादि एवं अनन्त हैं।
भगवान गणेश के विभिन्न दस रूपों का वर्णन
गणेश जिन्हे गणपति , विनायक , लंबोदर और पिल्लैयार के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू देवताओं में सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक है।
श्री बाल गणपति – यह भगवान गणेश का बाल रूप है। यह धरती पर बड़ी मात्रा में उपलब्ध संसाधनों का और भूमि की उर्वरता का प्रतीक है। उनके चारों हाथों में एक-एक फल है- आम, केला, गन्ना और कटहल। गणेश चतुर्थी पर भगवान के इस रूप की पूजा भी की जाती है।
तरुण गणपति – यह गणेशजी का किशोर रूप है। उनका शरीर लाल रंग में चमकता है। इस रूप में उनकी 8 भुजाएं हैं।
सिद्धि गणपति – इस रूप में गणेशजी पीतवर्ण हैं। उनके चार हाथ हैं। वे बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं। इस रूप में वे आराम की मुद्रा में बैठे हैं। अपनी सूंड में मोदक लिए हैं। मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धि विनायक मंदिर में गणेशजी का यही स्वरूप विराजित है।
विघ्न गणपति – इस रूप में गणेशजी का रंग स्वर्ण के समान है। उनके आठ हाथ हैं। वे बाधाओं को दूर करने वाले भगवान हैं। इस रूप में वे भगवान विष्णु के समान दिखाई देते हैं। उनके हाथों में शंख और चक्र हैं। वे कई तरह के आभूषण भी पहने हुए हैं।
महागणपति – रक्तवर्णहैं और भगवान शिव की तरह उनके तीन नेत्र हैं। उनके दस हाथ हैं और उनकी शक्ति उनके साथ विराजित हैं। भगवान गणेश के इस रूप का एक मंदिर द्वारका में है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने यहां गणेश आराधना की थी।
एकदंत गणपति – इस रूप में गणेशजी का पेट अन्य रूपों के मुकाबले बड़ा है। वे अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए हैं। वे रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाते हैं और जड़ता को दूर करते हैं। इस रूप का पूजन पूरे देश में व्यापक रूप से होता है।
ऋणमोचन गणपति – गणेशजी का यह रूप अपराधबोध और कर्ज से मुक्ति देता है। यह रूप भक्तों को मोक्ष भी देता है। वे श्वेतवर्ण हैं और उनके चार हाथ हैं। इनमें से एक हाथ में मीठा चावल है। इस रूप का मंदिर तिरुवनंतपुरम में है।
द्विमुख गणपति – गणेशजी के इस स्वरूप में उनके दो मुख हैं, जो सभी दिशाओं में देखने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों मुखों में वे सूंड ऊपर उठाए हैं। इस रूप में उनके शरीर के रंग में नीले और हरे का मिश्रण है। उनके चार हाथ हैं।
संकष्टहरण गणपति – इस रूप मेंगणेश डर और दुख को दूर करते हैं। मान्यता है कि इनकी आराधना संकट के समय बल देती है। उनके साथ उनकी शक्ति भी मौजूद है। शक्ति के हाथ में भी कमल पुष्प है। गणेशजी का एक हाथ वरद मुद्रा में है।
बाल गणपति: इस रूप में गणेश जी को छोटे बालक के रूप में पूजा जाता है। यह अवतार सरलता और भोलापन का प्रतीक है।
वक्रतुंड: यह अवतार बुराई पर विजय का प्रतीक है। वक्रतुंड ने अपने इस रूप में मत्सरासुर राक्षस का वध किया था।
एकदंत: इस रूप में गणेश जी का एक ही दांत होता है। एकदंत अवतार में गणेश जी ने मदासुर नामक राक्षस को पराजित किया था।
महोड़क: इस अवतार में गणेश जी ने अपने बड़े पेट के कारण ‘लंबोदर’ नाम से भी प्रसिद्धि पाई। इस रूप में उन्होंने मोहासुर राक्षस का नाश किया था।
गजानन: इस रूप में गणेश जी का सिर हाथी का होता है। गजानन अवतार में उन्होंने लोभासुर राक्षस का वध किया था।
लंबोदर: लंबोदर अवतार में गणेश जी का पेट बहुत बड़ा होता है। यह रूप समृद्धि और सुख का प्रतीक है। इस रूप में उन्होंने क्रोधासुर राक्षस को हराया था।
विकट: विकट अवतार में गणेश जी ने अपने इस रूप से करालासुर राक्षस का संहार किया था। यह रूप भयंकरता और शक्ति का प्रतीक है।
विघ्नराज: इस अवतार में गणेश जी ने विघ्नासुर राक्षस का वध किया था। विघ्नराज रूप में गणेश जी समस्त विघ्न-बाधाओं को दूर करते हैं।
गणेश चतुर्थी पर न करें ये काम
- मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है।
- गणेश जी का जन्म मध्याह्न में हुआ था, इसलिए मध्याह्न में ही प्रतिष्ठापित करें।
- गणेश चतुर्थी पर अपने घर में भूलकर भी गणपति की आधी-अधूरी बनी या फिर खंडित मूर्ति की स्थापना या पूजा नहीं करना चाहिए।
- गणपति की पूजा में बासी या मुरझाए हुए फूल भी नहीं चढ़ाना चाहिए।
- गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
क्यों किया जाता है भगवान गणेश का विसर्जन
गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ गणेशोत्सव दसवें दिन गजानन की विदाई के साथ पूरा होता है। इसमें गणेश की मिट्टी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। ये एक अनुष्ठान है जो जन्म व मृत्यु के चक्र को पूर्णता देता है। जल में नारायण यानी ईश्वर का वास होता है, इसलिए गणेश और नारायण के मिलने का ये अनुष्ठान समृद्धि व पूर्णता का प्रतीक होता है।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार श्री वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था। 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया है। तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडा किया था। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी। तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा। इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
एकदंत, दयावंत, चार भुजाधारी।
मस्तक सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।
पान चढ़ें, फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
दीनन की लाज राखो, शम्भु-सुत वारी।
कामना को पूरा करो, जग बलिहारी।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
सूर श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
।। गणपति बप्पा मोरया ।।
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