ब्रज कथा : एक ब्रजभक्त की साधना तथा अनुभूति
जय कृष्णदास नाम के एक गौड़ीय सन्त श्री राधा कुण्ड के समीप वर्ती विचेल्लीवास गांव में भजन करते थे। उस समय श्रीराधा कुण्ड के जगदानन्द दास पण्डित बाबाजो विशेष प्रभाव शाली थे। उन के गुरु श्री भगवान दास बाबा से इनका विशेष सौहार्द था ।
एक बार बाबा जयकृष्ण दास विचेल्ली वास्स गांव की अपनी भजन कुटिया में भजन कर रहे थे उस समय श्री नित्यानन्द वंशज गोस्वामी श्री नन्द किशोर जी ने ब्रज की परिक्रमा करते हुए विचेल्ली- वास गांव में आकर अवस्थान किया। उनके साथ उनके सेव्य श्रीराधा मदन मोहन ठाकुर थे, एक दिन रात्री में श्री नन्द किशोर गोस्वामी को स्वप्न में श्री राधामदन मोहन भगवान् ने आदेश दिया कि मैं अब इन बाबाजी (जय कृष्ण दास) की सेवा स्वीकार करूँगा। मैं अब आगे नहीं जाऊँगा। यह आदेश पा श्रीयुगल सरकार की सेवा श्रीजय- कृष्ण दास बाबा को देकर नव किशोर गोस्वामी स्वयं प्रस्थान कर गए ।
जय कृष्ण दास बाबा जी की श्री कृष्ण चरणारविंद में पूरी भक्ति थी और अपने भगवान् श्री राधामदन मोहन के चरणारबिंदों में यथार्थ रति थी। भगवत् कथा सुनते, दिन रात भजन करते रहते रात्रि भर जप करते रहते, गोवर्द्धन के सिद्ध मधुसूदन बाबा भी इन के शिष्य थे।
रागानुगा भक्ति क्या होती है
सिद्ध मधुसूदन बाबा ने इन से पूछा कि रागानुगा भजन क्या है? वह बोले सिद्ध गुरुवर के अनुगत हो कर उनकी कृपा से प्राप्त सिद्धि गोपी रूप मञ्जरी की देह से सेवा करने का नाम ही रागानुगा भजन है। यह भजन ही गोविन्द प्राप्ति का उपाय है। यह जय कृष्ण दास श्री रूप सनातन के भजन रीति के और त्याग के अनुगामी थे। वह विषयी लोगों से दूर ही रहते थे । जीर्ण वस्त्र जो मार्ग में पड़े रहते उसी का कंथा धारण करते थे।
श्री वृन्दा देवी के स्वप्न आदेश से यह महात्मा कामवन के विमल कुण्ड पर अपना भजन स्थान फूस की कुटिया बना कर उसमें भजन करने लगे ।
उन दिनों में कामवन भरतपुर राज्य स्थान के राजा के आधीन था, एक दिन जब ये मधुकरी मांगने दूर के गांव में चले गये उस समय भरतपुर महाराज उनकी कुटिया में आकर दर्शनार्थ बैठ गये, जयकृष्णदास बाबा दिन भर उस दिन उस गांव में नहीं आये राजा के चले जाने पर अपनी कुटिया में बाबा ने प्रवेश किया राजा से मिले भी नहीं। बाबा वैराग्य पूर्ण भजन करने में निपुण थे ।
श्रीकृष्ण का प्रेम राधा के बिना अधूरा
भक्त का कृष्ण विरह में तड़पना
एक दिन जयकृष्ण दास बाबा कुटिया में बैठे इष्ट विरह में अधीर थे। सन्ध्या हो गई किन्तु कुटिया के बाहर स्नान आदि के लिये भी न निकले। इतने में देखते हैं कि विमल कुण्ड के चारों तरफ असंख्य गऊ और ग्वाल बाल उपस्थित हैं। बाबा जी को कुटिया के बाहर आते देख कर बोले ‘बाबा’ हम बड़े प्यासे हैं, हम को जल दो बाबा जी बिना उत्तर दिये ही वापिस कुटिया में बैठ गये । ग्वालबालों की बात सुनी अनसुनी कर दी। किन्तु बालगण कुटिया के बाहर उत्पात करने लगे और कहने लगे ‘बंगाली बाबा जी तुम जिस लिये भजन करते हो, मैं सब जानता हैं। तू दया हीन महन्त कसाई की तरह बैठा है।
भक्त और भगवान के बीच वार्तालाप
बाबा जी कुटिया से निकल कर जल पिला दे हम सब बहुत प्यासे हैं। तब बाबा जी क्रोधित हो एक डण्डा लेकर बाहर निकले तो असंख्य अद्भुत गौ और गोपाल गणों को देखा। उन के दर्शन करते ही बाबा जी का क्रोध शान्त हो गया, और उनसे जिज्ञासा करने लगे ‘तुम लोग कहां से आये और कहां रहते हो ?
वे बोले ‘हम नन्द गांव में रहते हैं।
बाबा जीः- तुम्हारा नाम क्या है ?
बालकः- मेरो नाम कन्हैया है।
बाबाजीः- (दूसरे बालक की ओर इंगित करके) उनका क्या नाम है ?
बालकः- बलदाऊ है।
पुनः बाबा जी पहिले तुम पानी पिलाओ, फिर बात करना, स्नेह वश तब बाबा ने करवे का जल पिला दिया ।
बालकः- देख बाबा जी ! हम लोग नित्य बहुत दूर से आते हैं। और प्यासे चले जाते हैं। तू कुछ जल व बाल भोग रखा कर ।
बाबा जीः- यहां नित्य आने व खाने की उपाधि मत करना ।
यह कह कर बाबा जी कुटिया में बैठ गये और विचार करने लगे कि ऐसे अद्भुत गोप शिशु और गौ तो कभी देखे नहीं। गोप बालक की गाली भी कैसी मधुर लगी। ये गायें और गोप बालक तो दिव्य लगते हैं। चिंता करते-करते फिर दुबारा देखने की चाह हुई, बाहर आये तो सब अन्तर्ध्यान हो चुके थे। बाबा जी दुःखी हो गये और अनुताप करने लगे। पुनः प्रेमाविष्ट हो गये तो देखा श्री कृष्ण सामने खड़े सान्त्वना देते कह रहे हैं तू उठ शोक मत कर कल मैं तेरे पास आऊँगा । बाबा जी का आवेश भंग हो गया और उन्होंने धैर्य धारण किया ।
दूसरे दिन एक वृद्धा व्रज वासिनी एक गोपाल जी की मूर्ति लेकर आई और कहने लगी, बाबा जी ! हम से इन गोपाल जी की सेवा नहीं होती है। तू इन गोपाल जी की सेवा कर । बाबा जी बोले हम कैसे सेवा करेंगे। हम सेवा की चीज कहाँ से लावेंगे ?
वृद्धा बोली- मैं नित्य सेवा की चीज तुमको ला दिया करूँगी । बाबा जी श्री गोपाल जी का सौन्दर्य और माधुरी देख मुग्ध हो गये और उन गोपाल जी को ले लिया तथा सेवा करने लगे । रात्रि में दर्शन दिया और कहा मुझको वृन्दादेवी ले आई हैं। यह स्वप्न का सुख बाबा ने देखा श्री वृन्दादेवी की कृपा का अनुसन्धान बाबा ने किया । बाबा गांव से चून मांगने और अमनियां सिद्ध कर गोपाल जी को भोग लगाकर प्रसाद पाते। रात्रि-भर बैठ कर भजन करते ।
बाबा का निकुंज प्रवेश
चैत्र शुक्ला द्वादशी को बाबा निकुञ्ज पधारे। निकुञ्ज-प्राप्ति के समय बाबा कहने लगे – मेरी अँगिया कहाँ ? मेरी कंचुकी कहाँ ? मेरा घाघरा कहाँ ? मेरी ओढ़नी कहाँ ? इत्यादि अभिसारिका भाव की स्वाभिलाष सूचना देते हुए देह त्याग किया ।
साभार : श्रीराधा रस सुधा निधि निकुंज रसग्रंथ
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