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Govardhan Ki Parikrama : गोवर्धन परिक्रमा का विशेष महत्व और गोवर्धन पर कृष्ण लीला

Govardhan Ki Parikrama : गोवर्धन पर्वत के हर छोटे-बड़े पत्थर में श्री कृष्ण का वास है। यहां तक माना जाता है कि जो व्यक्ति गोवर्धन पर्वत की यात्रा करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि जो लोग यह परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हम आज जानेंगे गोवर्धन परिक्रमा के बारे में।

संपूर्ण गोवर्धन परिक्रमा

श्रीराधाकुण्ड और श्रीश्यामकुण्ड गिरिराज श्रीगोवर्धनके दो नेत्र हैं। अतः श्रीगिरिराजजीके ही ये सर्वश्रेष्ठ अङ्ग हैं। यहीं से गिरिराजजी की परिक्रमा आरम्भ करने पर जो-जो कृष्णलीला स्थलियों दर्शनीय हैं, उनका नीचे उल्लेख किया जा रहा है:

  • मुखराई : राधाकुण्ड के दक्षिण में एक मील की दूरी पर यह स्थान है। यह राधिका जी की माता मही वृद्धा मुखराजी का वासस्थान है। यशोदाजी को बाल्यावस्था में इन्होंने दूध पिलाया था। मातामही मुखरा कौतुकवश श्रीराधाकृष्ण युगलकिशोर-किशोरी का अलक्षित रूप में मिलन कराकर बड़ी प्रसन्न होती थीं। ये महाराज वृषभानु की सास और कृतिका मैया की माता हैं। ब्रजवासी इनको “बढ़ाई” नाम से पुकारते थे। ये प्रतिदिन प्रातःकाल बड़ी उत्कण्ठा से श्रीमती राधिका एवं कृष्णका दर्शन करने जाती थीं। यहाँ मुखरा देवीका दर्शन है।
  • रत्न सिंहासन– यह श्रीराधाकुण्ड से गोवर्धन की ओर परिक्रमा मार्गमें एक मील दूरीपर कुसुम सरोवर के दक्षिण में स्थित है। यहाँका लीला-प्रसङ्ग इस प्रकार है- शिव चतुर्दशी के उपरान्त पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण एवं श्रीबलराम गोप रमणियों के साथ विचित्र रंगोंकी पिचकारियों के साथ परस्पर होली खेल रहे थे। मृदंग-मञ्जीरे, वीणादि वाद्य यन्त्रोंके साथ वासंती आदि रागाँसे मधुर सङ्गीत भी चल रहा था। श्रीमती राधिकाजी पास ही रत्न सिंहासन पर बैठ गई। उसी समय कुबेर का भुनचर शंखचूड भगवान् श्रीकृष्ण को मनुष्य समझकर परम सुन्दरी इन गोप ललनाओं को हरण करने के लिए चेष्टा करने लगा। गोपियाँ राम और कृष्णको पुकारती हुई आर्त्तनाद करने लगीं। कृष्णने बड़े वेगसे दौड़कर शंखचूड़का बध किया और उसके मस्तक की मणि निकालकर श्रीबलरामजीको प्रदान की। बलरामजीने उस मणिको धनिष्ठा के हाथों श्रीमती राधिका को प्रदान किया। यह उसी रत्न सिंहासन का स्थान है जहाँ राधिकाजी बैठी थीं।
  • श्यामकुटी– यह स्थान रत्न-सिंहासन के पास ही सघन वृक्षावलीके मध्यमें स्थित है। यहाँ श्रीश्यामसुन्दर ने श्यामरंग की कस्तूरीका अङ्गोंमें अनुलेपन कर श्याम रङ्ग के अलंकार तथा श्याम रङ्गके ही वस्त्र धारणकर श्याम रङ्गके निकुञ्ज में प्रवेश किया तो गोपियाँ भी उनको पहचान न सकीं। तत्पश्चात् पहचाननेपर उनकी बड़ी मनोहारी लीलाएँ सम्पन्न हुईं। पास ही बाजनी शिला है, जिसे बजानेसे मधुरनाद उत्पन्न होता है।
  • ग्वाल पोखर- श्यामकुटी के पास ही सघन सुन्दर वृक्ष और लताओंसे परिवेष्टित मनोहर लीला स्थली है। गोचारणके समय श्रीकृष्ण मध्याह्न कालमें यहाँ विश्राम करते हैं। बाल सखाओंके द्वारा कृष्णकी प्रेममयी सख्य रसकी सेवा तथा ग्वाल बालोंकी छीना-झपटी आदि मनोहारी लीलाओंके कारण बाल पोखरा अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहाँका एक प्रसङ्ग इस प्रकार है-श्रीकृष्ण पुरोहित बालकका वेश धारणकर बटु मधुमङ्गलके साथ सूर्यकुण्डमें श्रीमती राधिकाका सूर्यपूजन सम्पन्न कराकर यहाँ सखाओंके साथ बैठ गये। मधुमङ्गलके पास दक्षिणासे मिले हुए मनोहर लड्डू और एक स्वर्ण मुद्रिका थी। मधुमङ्गलने अपने वस्त्रोंमें उन्हें विशेष सावधानीके साथ बाँध रखा था। कौतुकी बलरामने मधुमङ्गलसे पूछा- भैया मधुमङ्गल ! तुम्हारी इस पोटलीमें क्या है? मधुमङ्गलने झिझकते हुए उत्तर दिया-कुछ नहीं। इतनेमें बलदेवजीने सखाओंकी ओर इशारा किया। उसमेंसे कुछ सखाओंने मधुमङ्गलके दोनों हाथोंको पकड़ लिया। एक सखाने अपनी हथेलियोंसे उसके नेत्र बंदकर दिये। कुछ सखाओंने बलपूर्वक मधुमङ्गलके हाथोंसे वह पोटली छीन ली। फिर ठहाके लगाते हुए मधुमङ्गलके सामने ही उन लड्डुओंको परस्पर बाँटकर खाने लगे। छीना-झपटीमें मधुमङ्गलका वस्त्र भी खुल गया। वह बड़े जोरसे बिगड़ा और हाथमें यज्ञोपवीत धारणकर बलराम तथा श्रीदामादि सखाओंको अभिशाप देनेके लिए प्रस्तुत हो गया। तब कृष्णने उसे किसी प्रकार शान्त किया। तब मधुमङ्गल भी हँसता हुआ उन सखाओंसे लड्डुके कुछ अवशिष्ट चूर्णको मांगने लगा। यह ग्वाल पोखरा इन लीला स्मृतियोंको संजोए हुए आज भी विद्यमान है। श्रीचैतन्य महाप्रभुने गिरिराज गोवर्धनकी परिक्रमा के समय इन लीलाओंका स्मरण करते हुए यहाँ पर कुछ क्षण विश्राम किया था। इसके पास में ही दक्षिणकी ओर किल्लोल कुण्ड है।
  • किल्लोल कुण्ड-अपने नामके अनुरूप ही यह कुण्ड श्रीराधाकृष्ण युगलकी जलकेलि तथा कृष्णका सखाओंके साथ जल क्रीड़ाका स्थल है।
  • कुसुम सरोवर– यह श्रीराधाकुण्ड से डेढ़ मील दक्षिण-पश्चिममें परिक्रमा मार्ग के दाहिनी ओर स्थित है। यहाँ बेली-चमेली, जूही, यूथी, मल्लिका, चम्पक आदि विविध प्रकारके पुष्पोंकी लताओं और तरुओंसे परिपूर्ण कुसुमवन है।

गोवर्धन पर्वत पर राधाकृष्ण की लीला

प्रशंग १ : एक दिन श्रीमती राधाजी सहेलियोंके साथ यहाँ पुष्प-चयन कर रही थीं। इतनेमें कृष्ण वहाँ उपस्थित हुए।

कृष्णने पूछा-कौन है?

राधाजी-कोई नहीं !

कृष्ण-ठीक से बताओ, तुम कौन हो?

राधाजी-कोई नहीं।

कृष्ण-बड़ी टेड़ी-मेढ़ी बातें कर रही हो।

राधाजी-तुम बड़ी सीधी साधी बातें करते हो।

कृष्ण-मैं पूछ रहा हूँ, तुम कौन हो ?

राधाजी-क्या तुम नहीं जानते ?

कृष्ण-क्या कर रही हो?

राधाजी-सूर्य पूजाके लिए पुष्प चयन कर रही हूँ।

कृष्ण-क्या किसी से आदेश लिया?

राधाजी-किसी से आदेश की आवश्यकता नहीं।

कृष्ण-अहो ! आज चोर पकड़ी गई। मैं सोचता था कि प्रतिदिन कौन हमारी इस पुष्पवाटिकासे पुष्पोंकी चोरी करता है तथा इस पुष्पोद्यानको सम्पूर्ण रूपसे उजाड़ देता है। आज तुम्हें पकड़ लिया है। अभी इसका दण्ड देता हूँ।

राधाजी-तुम इस पुष्पवाटिकाके स्वामी कबसे बने ? क्या यहाँ एक पौधा भी कभी लगाया है? अथवा किसी एक पौधेका सिञ्चन भी किया है? उल्टे तुम तो लाखों गऊओं तथा उद्धत सखाओंके साथ इस कुसुमवनको उजाड़नेवाले हो। भला रक्षक कबसे बने ?

कृष्ण-मुझ धर्मात्माके ऊपर आक्षेप मत करो। मैं अभी इसके लिए उचित शिक्षा दे रहा हूँ।

राधाजी-अहा हा! (मुस्कराते हुए) बड़े भारी धर्मात्मा हैं। पैदा होते ही एक नारीका बध किया, बचपनमें मैयासे भी झूठ बोलते, पास-पड़ोसकी गोपियों के घरों में मक्खन चुराते, कुछ बड़े होने पर गोप कुमारियों के वस्त्रों का हरण करते, अभी कुछ ही दिन पूर्व एक गायके बछड़े का बध किया। यह तो तुम्हारे धर्माचरणकी हद हो गई। उत्तर सुनकर कृष्ण सिर खुजलाते हुए मधुमङ्गलकी ओर देखने लगे। चतुर मधुमङ्गलने समझाया-चुप रहनेमें ही भलाई है।

इतनेमें सभी सखियोंने तालियाँ बजाते हुए श्यामसुन्दरको घेर लिया।

दूसरा प्रसङ्ग – एक दिन प्रातःकाल श्रीमती राधिकाजी अपनी सहेलियों के साथ पुष्प चयन करनेके लिए कुसुम सरोवरके तटपर उपस्थित हुई। कुसुम सरोवरके तटपर बेली, चमेली, जूही, कनेर, चंपक आदि विविध प्रकारके पुष्प खिल रहे थे। श्रीमतीजी एक वृक्षकी टहनी में प्रचुर पुष्पोंको देखकर उस टहनीको हाथसे पकड़कर दूसरे हाथसे पुष्पोंका चयन करने लगीं। इधर कौतुकी श्रीकृष्णने, श्रीमती राधिका को यहाँ पुष्प चयन करनेके लिए आती हुई जानकर, पहले से ही उस वृक्षकी डाल पर चढ़कर अपने भारसे उसे नीचे झुका दिया और स्वयं डाल पर पत्तोंकी आढ़में छिप गये, जिससे श्रीमतीजी उन्हें देख न सकें। श्रीमतीजी पुष्प चयनमें विभोर थीं। उसी समय कृष्ण दूसरी डाल पर चले गये, जिससे वृक्षकी वह डाल काफी ऊपर उठ गई, राधिकाजी भी उस डालको पकड़ी हुए ऊपर उठ गई। फिर तो वे बचानेके लिए चिल्लाने लगीं।

उसी समय श्रीकृष्णने पेड़की डालीसे कूदकर डालीमें टंगी हुई श्रीमतीजीको गोदीमें पकड़ कर उतारा। इधर सखियाँ यह दृश्य देखकर बड़े जोरसे ताली बजाकर हँसने लगीं। श्रीमती राधिकाजी श्रीकृष्णके आलिङ्गन पाशसे मुक्त होकर श्रीकृष्णकी भर्त्सना करने लगीं।

वर्तमान समयमें यहाँका कुसुमवन सम्पूर्ण रूपसे उजड़ गया है। भरतपुरके महाराजा जवाहरसिंहने १७६७ ई. में दिल्लीका खजाना लूटकर उस धनसे कुसुम सरोवरमें सुन्दर सोपानों सहित पक्के घाट बनाये थे। सरोवरके पश्चिममें राजा सूरजमलकी छत्री तथा उसके दोनों ओर दोनों रानियोंकी छत्रियाँ और पास ही दाऊजी का मन्दिर है।

Comments

1 thought on “Govardhan Ki Parikrama : गोवर्धन परिक्रमा का विशेष महत्व और गोवर्धन पर कृष्ण लीला

  1. 🌺 गोवर्धन परिक्रमा का अद्भुत महत्व! 🙏✨ इस पवित्र यात्रा से न केवल पाप नष्ट होते हैं, बल्कि सुख और शांति का आशीर्वाद भी मिलता है। कृष्ण की लीलाओं की याद दिलाती ये स्थान हमारे आध्यात्मिक सफर को और भी खास बनाते हैं। 🌄💖 #GovardhanParikrama

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