What is the theme of Mahakumbh 2025?
महाकुंभ मेला 2025 दिनांक एवं स्थान : प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक ।
आप जब इस महाकुंभ मेले जायेंगे तो आपको पाएंगे कि दुनिया के एक सबसे अद्भुत दृश्य को देख रहे है। वहां देश के अलग-अलग भागों से आए नाना प्रकार के लोग चारों तरफ बैठे थे हालांकि इतनी भीड़ होती है कि उनके पास सोने की जगह कम ही रहती है, इसलिए वे अलग-अलग जगहों पर आग जलाकर उसके चारों ओर बिखरे, अपनी भाषा व बोली में अपनी-अपनी संस्कृति और परंपरा के गीत गाते नाचते है और महाकुंभ के उत्सव में शामिल होते हैं। ये एक अद्भुत नजारा होता है जो आपको जरूर देखना चाहिए।
श्रीश्री रविशंकर जी का कहना है कि पृथ्वी और चंद्रमा अपने कालचक्रों में घूमते रहते हैं जिसका असर हर इंसान पर भी पड़ता है। लेकिन ये कालचक्र, जीवन के एक च्रक से दूसरे च्रक की यात्रा के दौरान या तो आपके लिए बंधन साबित हो सकते हैं या फिर अपनी सीमाओं के पार जाने के माध्यम बन सकते हैं। ये कालच्रक कई प्रकार के होते हैं और इनमें सबसे लंबा है 144 वर्ष का। 144 वर्ष में एक बार ऐसा होता है जब सौरमंडल में कुछ विशिष्ट घटनाएं होती हैं, जो आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होती हैं और इन्हीं मौकों पर महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। पिछला महा कुंभ मेला 2001 में हुआ था।
महाकुंभ का महत्व क्या है?
महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह हर 12 वर्षों में भारत के चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक—में आयोजित होता है। महाकुंभ को अध्यात्म, धर्म, और मानवता के मिलन का प्रतीक माना जाता है, जहां करोड़ों लोग गंगा, यमुना, सरस्वती और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करके मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करते हैं।
महाकुंभ में स्नान करने से क्या लाभ होता है?
स्कंद पुराण में कुंभ के दौरान स्नान को इच्छा पूर्ति और शुभ फल पाने का जरिया बताया गया है. कूर्म पुराण कहता है कि कुंभ स्नान से पाप नष्ट होते हैं. इसके साथ ही यह पुराण यह भी कहता है कि सिर्फ पाप नष्ट करने के लिए कुंभ स्नान करना फलदायी नहीं होता है, बल्कि आप यह संकल्प भी लें कि अब कोई पाप नहीं करेंगे।
कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?
बृहस्पति को अपनी कक्षा में 12 साल का समय लगता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। कुंभ’ का सही अर्थ होता है कलश यानी घड़ा। दरअसल कुंभ स्नान की कहानी भी एक अमृत के घड़े से जुड़ी है। पूर्णकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है और महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है। इस प्रकार वर्षों की गणना करें, तो यह 144 सालों में एक बार आयोजित होता है।
कब आयोजित होता है महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ
कुंभ पाँच प्रकार का होता है- महाकुंभ, पूर्ण कुंभ, अर्ध कुंभ, कुंभ और माघ कुंभ, जिसे माघ मेला भी कहते हैं। 144 बाद लगने वाले महाकुंभ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज के संगम पर ही होता है। शास्त्रों के अनुसार, जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।
पूर्ण कुंभ 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है। पूर्ण कुंभ का आयोजन 4 तीर्थस्थलों- हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में होता है। हरिद्वार गंगा नदी, उज्जैन शिप्रा नदी, नासिक गोदावरी नदी और प्रयागराज गंगा, यमुना एवं सरस्वती नदियों के संगम पर बसा है।
अर्ध कुंभ का आयोजन हर 6 साल पर होता है। इसका आयोजन केवल दो स्थानों- प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। माघ कुंभ हर साल सिर्फ प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। जब सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तो उज्जैन में जो कुंभ मनाया जाता है उसे सिंहस्थ कुंभ कहते हैं।
महाकुंभ 2025 के बारे में क्या खास है?
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ 2025 आध्यात्मिकता और नवीनता का एक असाधारण मिश्रण होगा, जो सनातन धर्म की पवित्र परंपराओं को अत्याधुनिक डिजिटल प्रगति के साथ एक साथ लाएगा ।
महाकुंभ 20250 में रेलवे देगा अपनी खास सेवाएं : रेलवे के लिए सेवभाव के साथ अपनी सर्वोत्तम सेवाएं प्रस्तुत करने की अहम जिम्मेदारी है और रेलवे इसके लिए पूर्ण रूप से तैयार है।
- प्रतिदिन 10 लाख टिकट किए जाएंगे वितरित
- महाकुम्भ के दौरान रेलवे स्टेशनों पर खानपान सामग्री में नजर आएगी स्वच्छता
- प्रयागराज मण्डल ने सभी कैटरिंग स्टाल धारकों को निर्धारित शुल्क पर बिक्री का दिया निर्देश
- सभी स्टॉल्स पर सामान सुव्यवस्थित ढंग से रखने, कर्मचारियों को उचित ड्रेस और नेम प्लेट लगाने का भी निर्देश
- कैटरिंग स्टॉल्स पर बैठे कर्मचारियों को श्रद्धालुओं के साथ करना होगा विनम्र व्यवहार
- यात्रियों की सुविधाओं के लिए पूरे मनोयोग से जुटी है डबल इंजन की सरकार
कुंभ मेले में शाही स्नान क्या है?
दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागमों में से एक महाकुंभ मेला 2025 अपने अनुष्ठानिक शाही स्नान के लिए प्रसिद्ध है। यह पवित्र स्नान त्योहार का एक महत्वपूर्ण पहलू है, ऐसा माना जाता है कि यह भक्तों को उनके पापों से मुक्त करता है और मुक्ति (मोक्ष) प्रदान करता है। शाही स्नान इस मेले की सबसे अहम परंपरा है, जो श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है. इस विशेष स्नान का उद्देश्य सिर्फ शारीरिक शुद्धता नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता भी प्राप्त करना है।
महाकुंभ की कथा
महाकुंभ की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिसमें अमृत कलश प्राप्त हुआ। अमृत के बंटवारे को लेकर देवताओं और दानवों में संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—पर गिर गईं। इन स्थानों को पवित्र माना गया और यहीं पर महाकुंभ का आयोजन होता है। अमृत की बूँदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। जहाँ-जहाँ अमृत की बूँदे गिरीं, वहाँ-वहाँ आज कुंभ मेले का आयोजन होता है।
पढ़िए : इस बार महाकुंभ 2025 में सुरक्षा के साथ मनोरंजन की व्यवस्थाएं भी
महाकुंभ की महिमा
- पवित्र स्नान: यह मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक एकता: महाकुंभ विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, और समाज के लोगों को एक मंच पर लाता है।
- धार्मिक प्रवचन: यहां साधु-संतों और गुरुओं के प्रवचन होते हैं, जो धर्म, दर्शन और जीवन के उद्देश्यों पर आधारित होते हैं।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: महाकुंभ मेले में विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है।
महाकुंभ का आयोजन और समय
महाकुंभ का समय ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय होता है। जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति विशेष राशियों में आते हैं, तब महाकुंभ का आयोजन होता है।
महाकुंभ की विशेषता
- प्रयागराज में इसे त्रिवेणी संगम के कारण अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
- हरिद्वार में गंगा नदी का धार्मिक महत्व इसे विशिष्ट बनाता है।
- उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर भगवान महाकालेश्वर का प्रभाव है।
- नासिक में गोदावरी नदी का पवित्र स्नान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
महाकुंभ भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा है और इसे धार्मिक आस्था, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक माना जाता है।
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