Holi muhurat and tithi : हिंदू कैलेंडर के अनुसार देशभर में बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाए जाना वाला त्यौहार होली इस बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च 2025 को सुबह 11 बजकर 26 मिनट पर होगी और अगले दिन 14 मार्च 2025 को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, 14 मार्च को होली मनाई जाएगी और 13 मार्च की रात्रि को होलिका दहन किया जाएगा। इस साल होलिका दहन के दिन भद्रा का भी साया रहेगा।
होलिका दहन का मुहूर्त : पंचांग के अनुसार, 13 मार्च को देर रात 11 : 27 पीएम से लेकर 14 मार्च को 12:30 एएम तक लगभग 01 घंटा 40 मिनट तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है।
होलिका दहन के दिन भद्रा का भी साया ऐसे में क्या नहीं करना चाहिए?
हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। भद्रा, जो पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में व्याप्त होती है, के समय होलिका पूजा और होलिका दहन नहीं करना चाहिये। सभी शुभ कार्य भद्रा में वर्जित हैं।
श्री कृष्ण का अत्याधिक प्रिय त्योहार होली
होली का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण को अत्यधिक प्रिय था। जिन स्थानों पर श्री कृष्ण ने अपने बालपन में लीलाएँ और क्रीडाएँ की थीं उन स्थानों को ब्रज के नाम से जाना जाता है। इसीलिये ब्रज की होली की बात ही निराली है। ब्रज की होली की छटा का आनन्द लेने के लिये दूर-दराज प्रदेशों से लोग मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, नन्दगाँव और बरसाना में आते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में निराली और विख्यात है।
ज्यादातर जगहों पर होली दो दिन मनायी जाती है। होली के पहले दिन को होलिका दहन, जलानेवाली होली और छोटी होली के नाम से जाना जाता है और इस दिन लोग होलिका की पूजा-अर्चना कर उसे आग में भस्म कर देते हैं। दक्षिण भारत में होलिका दहन को काम-दहनम् के नाम से मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन को रंगवाली होली के नाम से जाना जाता है। सूखे गुलाल और पानी के रंगों का उत्सव दूसरे दिन ही मनाया जाता है। मौज-मस्ती के दिन की वजह से दूसरे दिन को होली का मुख्य दिन माना जाता है। शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों और सरकारी दफ्तरों में होली का अवकाश दूसरे दिन ही रखा जाता है। रंगवाली होली को धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है।
फगुआ गीत कब गाते हैं?
फगुआ मतलब फागुन, होली। होली के दिन की परम्परा यह है कि सुबह सुबह धूल-कीचड़ से होली खेलकर, दोपहर में नहाकर रंग खेला जाता है, फिर शाम को अबीर लगाकर हर दरवाजे पर घूमके फगुआ गाया जाय। फाग होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है। यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोक गीत है पर समीपवर्ती प्रदेशों में भी इसको गाया जाता है।
होली गीत और भजन
खेलत बसंत होरी नवल छबीली जोरी,
उड़त गुलाल अनुराग कौ सुरंग री।
मृदु मुसकानि उर फूल एई फूल भये,
हाव-भाव सौंधे भींजे सोहैं अँग-अंग री ॥
नैननिं की चितवनि छिरकनि प्रेम-नीर,
सींचत हैं पिय-हिय भरी रस-रंग री।
‘हित ध्रुव’ भींजे सुख बारिध विलास हाँस,
सोई सुख देखें सखी दिनहिं अभंग री ॥
: श्री ध्रुवदास, ब्यालीस लीला, श्रृंगार शत
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