धर्म

श्रीराम-सहचर एवं सखा गण कौन हैं ?

दिनकर सुत हरिराज बालिबछ केसरि औरस । दधिमुख द्विबिद मयंद रिच्छपति सम को पौरस ॥

उल्का सुभट सुषेन दरीमुख कुमुद नील नल। सरभ रु गवै गवाच्छ पनस गंधमादन अतिबल ॥

पद्म अठारह जूथपति रामकाज भट भीर के। सुभ दृष्टि बृष्टि मो पर करौ जे सहचर रघुबीर के ॥

Friends of Shri Ram : भगवान राम के कई घनिष्ठ मित्र थे, जिनमें सबसे प्रमुख थे सुग्रीव, हनुमान और लक्ष्मण । वानर राजा सुग्रीव, राम के मित्र बन गये, जब राम ने उन्हें उनके भाई बाली से उनका राज्य और पत्नी वापस दिलाने में मदद की। 

सूर्य के पुत्र वानरराज सुग्रीव जी, बालि पुत्र अंगदजी, केशरी के पुत्र हनुमान्जी, दधिमुख जी, द्विविद जी, मयन्द जी, जिनके समान कोई साहसी और बलवान् नहीं है-ऐसे रीछों के राजा जाम्बवान्जी, श्रेष्ठ योद्धा उल्कामुख जी, सुषेण जी, दरीमुख, कुमुद, नील, नल, शरभ, गवय, गवाक्ष, पनस और महाबलवान् गन्धमादन आदि अठारह पद्म जो सेनापति हैं- ये संकटके समय भक्तों के तथा श्रीरामजी के कार्यको करने वाले महान् वीर हैं। श्रीरामचन्द्रजी के ये जो सखागण हैं, वे हमारे ऊपर मंगल कारिणी कृपा दृष्टि की वर्षा करें.

सूर्यपुत्र सुग्रीव : वानरराज सुग्रीवजी श्रीरामके सखा और भक्त थे।

बालिपुत्र अंगद : वनवास के समय भगवती जानकी का अन्वेषण करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम ऋष्यमूक पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने सुग्रीवसे मत्रता की। मरते समय बालिने अपने पुत्र अंगद को उन सर्वेश्वरके चरणोंमें अर्पित किया। प्रभुने अंगदको स्वीकार किया। सुग्रीवको किष्किन्धा का राज्य मिला, किंतु युवराज पद बालिकुमार अंगदजी का ही रहा। अंगदने भगवान्‌ की इस कृपाको हृदय से ग्रहण किया।

केशरीपुत्र हनुमान जी : भगवान श्रीराम की सेवा करने के लिए उनके अवतार में आए, क्योंकि भगवान शंकर अपने रूप से इस सेवा का आनंद नहीं ले सकते थे. इसलिए, उन्होंने अपने ग्यारहवें रुद्र रूप को वानर के रूप में अवतरित किया. श्री हनुमान जी हमेशा अपने प्रिय स्वामी, श्री राम के ध्यान में लगे रहते थे।

श्रीजाम्बवान्जी : एक कथा के अनुसार एक बार जब ब्रह्मा जी तप में लीन थे, उन्हें जम्हाई आ गयी और उससे ही प्रथम ऋक्ष (रीछ) का जन्म हुआ। उनकी जम्हाई से जन्म लेने के कारण उनका नाम जामवंत पड़ा। जामवंत की आयु बहुत लम्बी थी। ऐसा माना जाता है कि श्रीराम अवतार के समय जामवंत की आयु छह मन्वन्तर से भी अधिक थी। उन्होंने मत्स्य अवतार को छोड़ कर कूर्म अवतार से लेकर श्रीकृष्ण अवतार तक सभी के दर्शन किये। अर्थात श्रीहरि के सात अवतारों के समय वे उपस्थित थे।

श्रीराम की सेना में वे सबसे वयोवृद्ध और बुद्धिमान थे और इसी कारण श्रीराम भी उनका बड़ा सम्मान करते थे और उनसे सलाह लिया करते थे। उनका आकार बहुत विशाल बताया गया है। आकार में वे कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे। 

ऐसा माना जाता है कि जामवंत ने ही जामथुन नगर बसाया था जो आज मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में है । यहाँ पर एक गुफा है जिसे जामवंत गुफा के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बरेली में भी जामवंत तपोगुफा नामक एक गुफा है। माना जाता है कि जामवंत यही त्रेता से द्वापर तक प्रतीक्षा की थी। गुजरात के राणावाव में भी एक प्राचीन गुफा है जिसे जामवंत की गुफा ही माना जाता है।

अन्य सहचर

इनके अतिरिक्त दधिमुख, द्विविद, मयन्द, सुषेण, नील, नल, शरभ, गवय और गन्धमादन- ये भी भगवान् श्रीरामके सहचर थे। ये सभी देवांश से उत्पन्न थे। ब्रह्माजीके आदेश से इन लोगोंने वानर का शरीर धारण किया था। इनमें अथाह बल था। श्रीदधिमुखजी चन्द्रमा के अंश से उत्पन्न हुए थे और ये सुग्रीव के मामा थे। ये बड़े ही सौम्य, भगवद्भक्त और मधुरभाषी थे। सुग्रीव के मधुवन नामक मनोरम महावन के ये प्रधान रक्षक थे। राम-रावण युद्ध के समय इन्होंने अपने वानर-सैनिकों के साथ श्रीराम का साथ दिया था। द्विविद और मयन्द अश्विनीकुमारों के पुत्र थे। श्रीसुषेणजी धर्म के अंश से अवतीर्ण हुए थे। नील अग्नि के और नल विश्वकर्मा के पुत्र थे। ये दोनों लोग एक ही माता से उत्पन्न थे, अतः भाई-भाई थे। समुद्र पर सेतु बाँधने में इन दोनों का विशेष योगदान था। ये दोनों दस-दस करोड़ वानरों के यूथपति थे। श्रीशरभजी पर्जन्य देवता के पुत्र थे। श्रीगवय जी यमराज के अंश से अवतीर्ण हुए थे और उन्हीं के समान पराक्रमी थे। श्रीगन्धमादन जी कुबेर के पुत्र थे। भगवान् ने इन सबको अपना सखा माना है।

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