Rakshabandhan Special: घर में उत्सव का माहौल था। रक्षाबंधन नजदीक था और चारों ओर खुशियों की गूंज थी। मिठाइयों की खुशबू रसोई से आ रही थी, रंग-बिरंगी राखियों से बाज़ार सजा हुआ था, और घर में पूजा की थाली सजी जा रही थी।
छह साल का आलोक खुशी से उछलता हुआ अपनी मां स्मिता के पास आया, जो रसोई में राखी की थाली सजा रही थीं।
“मां, मैं भी प्रिया दीदी को राखी बांधूंगा!” आलोक की आंखों में चमक और उत्साह था।
मां ने हंसते हुए पूछा, “अच्छा? लेकिन राखी तो बहनें अपने भाइयों को बांधती हैं ना?”
आलोक ने तपाक से जवाब दिया, “लेकिन मां, दीदी भी तो मेरी रक्षा करती हैं! जब मैं गिरता हूं तो वो मुझे उठाती हैं, स्कूल छोड़कर आती हैं, मुझे खाना खिलाती हैं, जब मैं डरता हूं तो गले लगाती हैं। वो भी तो मेरी देखभाल करती हैं। तो फिर मैं क्यों नहीं उन्हें राखी बांध सकता?”
मां उस पल कुछ नहीं कह सकीं। उनका छोटा सा बेटा, इतनी बड़ी बात कह गया था।
त्योहार का नया रूप
रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त में पूरा परिवार एकत्रित हुआ। सब इस पल के साक्षी बनना चाहते थे। आलोक ने अपनी दीदी को राखी बांधी, और बहन ने भी हंसते हुए अपने छोटे भाई को राखी बांध दी। दोनों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई।
उस क्षण किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन हर चेहरे पर एक शांत मुस्कान थी। जैसे सबने दिल से स्वीकार कर लिया हो कि रक्षा का बंधन सिर्फ एक दिशा में नहीं होता, यह प्रेम और जिम्मेदारी का आपसी संकल्प है।
कहानी से प्रेरणा : रक्षाबंधन का मतलब अब सिर्फ धागा बांधना नहीं रहा, अब ये रिश्तों को समझने और निभाने की परिभाषा बन गया है।
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