Celibacy: Must Follow Dietary And Lifestyle Principles
हम चाहते हैं कि खूब भजन करें और सात्विकता से रहें मगर ऐसा चाह कर भी नहीं हो पाता है। जबकि हम जानते हैं कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है क्योंकि जीवात्मा उस परमात्मा का ही एक अंश है और अंश तब तक शान्ति को प्राप्त नहीं कर सकता जब तक वह अपने अंश में न मिल जावे। तो आखिर कैसा भोजन हो की हमारा भजन खूब हो सके, जानने हैं:
सात्विक भोजन से होती है भजन में बढ़ोत्तरी
सात्विक आहार में सत्व के गुण होते हैं, जिनमें से कुछ में “शुद्ध, आवश्यक, प्राकृतिक, महत्वपूर्ण, ऊर्जा युक्त, स्वच्छ, सचेत, सच्चा, ईमानदार, बुद्धिमान” शामिल हैं। सात्विक आहार एक ऐसा आहार है जिसमें मौसमी खाद्य पदार्थों, फलों पर जोर दिया जाता है।
क्या है सात्विक भोजन : यौगिक और सात्विक आहार की श्रेणी में ऐसे भोजन को शामिल किया जाता है जो व्यक्ति के तन और मन को शुद्ध, शक्तिवर्द्धक, स्वस्थ और प्रसन्नता से भर देता है। आयुर्वेद में, सात्विक खाद्य पदार्थों को ऊर्जा, खुशी, शांति और मानसिक स्पष्टता बढ़ाने वाला माना जाता है।
शुद्ध सात्विक भोजन से ब्रह्मचर्य कैसे बनाए रखें?
ब्रह्मचर्य के लिए सात्विक आहार बहुत आवश्यक है, इस से शरीर और बुद्धि दोनों स्वस्थ रहते हैं। आप भोजन केवल उतना ही लें जो बिना औषधि के आपकी आंतें पचा सकें और कब्ज न हो। यदि आप स्वाद के चक्कर में अधिक मात्रा में भोजन करते हैं, और आपकी आंतों में पचाने की सामर्थ्य नहीं है तो इससे बीमारियाँ हो सकती हैं, क्योंकि आप पर्याप्त शारीरिक क्रिया नहीं करते। बिना नियमित शारीरिक गतिविधि के ज्यादा मिर्च, मसाला, तली चीज़े ग्रहण करने से दिनचर्या प्रभावित होगी और मन उदास रहेगा और तो और कब्ज होने रोज़ाना की गतिविधियों में रुचि नहीं रहती, और आलस्य का स्थिति बनी रहती है।
ब्रह्मचर्य के लिए सात्विक आहार बहुत आवश्यक है, इससे शरीर और बुद्धि दोनों स्वस्थ रहते हैं। भोजन में मौसमी फल और सब्ज़ियों का ही प्रयोग करना चाहिए। अन्य फल और सब्ज़ी जो केमिकल या फ्रोज़न कोल्ड स्टोरेज आदि से उपलब्ध कराये जाते हैं, उन का इस्तेमाल ना करें। ऋतु के ताज़ा फल सब्ज़ी के साथ हल्का भोजन जैसे गेहूं, चावल, जौ की रोटी, मूँग, अरहर, चना, गाय का दूध, घी, सेंधा नमक, चीनी, शकरकंद का प्रयोग कीजिए। ये आहार कभी ब्रह्मचर्य को दूषित नहीं होने देते।
ब्रह्मचर्य में भोजन के लिए क्या दिनचर्या होनी चाहिए?
ब्रह्मचर्य पुष्ट करने के लिए भोजन नियमित होना अति आवश्यक है। बिल्कुल भूखे रहना या हर समय भर पेट रहना दोनों ही ब्रह्मचर्य के लिए घातक हैं। इसलिए भोजन में बहुत सावधानी रखनी चाहिए।
भोजन खाने का समय और मात्रा एक नियम से होना चाहिए और बार-बार बदलनी नहीं चाहिए। दिन में दो बार भोजन खाना साधकों के लिए उचित माना गया है। दिन का भोजन सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच और रात्रि का भोजन 8 बजे से पहले तक हो जाना चाहिए। यदि आप ब्रह्मचर्य को बचाना चाहते हैं तो भोजन समय पर करें, रात में देर से खाया गया भोजन पचाना कठिन होता है जो कि ब्रह्मचर्य के लिए बहुत घातक भोजन में अधिक नमक, मिर्च, मसाला, मिठाई या चंचलता करने वाले कोई भी पदार्थ नहीं होने चाहिए।
भोजन खाने के बाद कुछ देर टहलना चाहिए, तुरंत ही सोना नहीं चाहिए। शरीर की स्वस्थता और भजन करने के लिए ये अति आवश्यक है। रात्रि में अधिक गर्म भोजन या पेय पदार्थ पी कर तत्काल सोने से निश्चित ही ब्रह्मचर्य की हानि होती है। अगर सोने से पहले दूध भी पियें तो थोड़ा ठंडा कर के ही पीना चाहिए।
प्रातः काल नींद से उठते ही नाम जप करते हुए बिना कुल्ला किए जल पीने का अभ्यास करना चाहिए। सुबह ख़ाली पेट जितना हो सके जल पीना चाहिए, इस से अंदर की गर्मी निकलती है और साधन में भी सहायता मिलती है। ताँबे के पात्र में रात भर रखा जल पीना आयुर्वेद के अन्तर्गत है और लाभदायक होता है। ताँबे का बासी जल बड़े-बड़े रोग शांत करने में सक्षम है।
भोजन को पचाने के लिए क्या करें :
आप यदि आठ-दस घंटे नियमित शारीरिक गतिविधि करें, तो भोजन पच जाएगा। जब आपका पेट साफ रहेगा, तो आप प्रसन्न मुद्रा में अपना जीवन जी सकते हैं और भजन भी कर सकते हैं। अगर आपके जीवन में कठिन शारीरिक परिश्रम नहीं है तो आपकी आंतों में गरिष्ठ भोजन (जैसे कि समोसा या हलवा) पचाने की क्षमता नहीं है हालांकि जो कड़ी मेहनत करते हैं।
खाने के बाद यदि आपको लगे कि आप अभी भी एक रोटी और खा सकते हैं, तो वहीं रुक जाएँ, क्योंकि हमें भोजन में पानी भी शामिल करना है और पेट में वायु के लिए भी थोड़ी जगह खाली रहे। यदि आप ऐसा नहीं करते, तो फिर आपको डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा, और आपको कब्ज, पेट में गर्मी, या धातु रोग जैसी शिकायतें होंगी।
क्या लहसुन और प्याज सात्विक भोजन में आते हैं?
प्याज और लहसुन ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें अत्यधिक मात्रा में गर्मी होती है और ये शरीर में पित्त को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, ये आक्रामकता, चिंता, इंद्रियों की अति उत्तेजना आदि का कारण बन सकते हैं। इसलिए आयुर्वेद में, ऐसे तामसिक और राजसिक खाद्य पदार्थों से परहेज करके स्वस्थ और पोषित जीवन जीने का तरीका बताया गया है।
सात्विक भोजन के लिए अन्य बातें जो जानना जरूरी हैं :
- भोजन करने से पहले हाथ, पैर, और मुंह को अच्छी तरह से धोना चाहिए।
- खाना पकाने के लिए सरसों का तेल सबसे अच्छा होता है।
- भोजन में फल, हरी पत्तेदार सब्जियां और मिलेट्स जैसे प्राकृतिक और पौष्टिक आहार शामिल होने चाहिए।
- भोजन की थाली में सलाद, धनिया, पुदीना या नारियल की चटनी को भी विशेष स्थान दें।
- ऋतु के ताज़ा फल सब्ज़ी के साथ हल्का भोजन जैसे गेहूं, चावल, जौ की रोटी, मूँग, अरहर, चना, गाय का दूध, घी, सेंधा नमक, चीनी, शकरकंद का प्रयोग कीजिए। ये आहार कभी ब्रह्मचर्य को दूषित नहीं होने देते।
भोजन की आवश्यकता क्यों है?
- भोजन की ज़रूरत इसलिए होती है क्योंकि यह हमें कई तरह से फ़ायदा पहुंचाता है, शरीर सही तरीके से काम करता है, तो सभी पोषक तत्व हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
- भोजन से शरीर को ऊर्जा मिलती है।
- शरीर की वृद्धि और मरम्मत के लिए भोजन ज़रूरी है।
- रोगों से बचाव के लिए भी भोजन ज़रूरी है क्योंकि भोजन से शरीर को प्रोटीन, विटामिन, कार्ब्स, लिपिड, और मिनरल जैसे ज़रूरी तत्व मिलते हैं।
- भोजन से शरीर को सही मात्रा में पानी भी मिलता है, जिससे हम हाइड्रेटेड रहते हैं।
अगर हम खाना खाने से इनकार कर दें तो क्या होगा?
भोजन में एक पोषक तत्व की कमी से कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं, इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन है कि अगर हम पूरी तरह से खाना बंद कर दें तो मानव स्वास्थ्य पर क्या असर होगा। कमी की बीमारी आहार में किसी विशिष्ट विटामिन या खनिज की कमी के कारण होती है, और यह शरीर में खराबी पैदा करती है।
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