Chitrakoot Dham : Shri Kamta Nath Mandir story
Chitrakoot Dham : कामदगिरी चित्रकूट धाम का मुख्य पवित्र स्थान है। संस्कृत शब्द ‘कामदगिरी’ का अर्थ ऐसा पर्वत है, जो सभी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करता है। माना जाता है कि यह स्थान अपने वनवास काल के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी का निवास स्थल रहा है। उनके नामों में से एक भगवान कामतानाथ, न केवल कामदगिरी पर्वत के बल्कि पूरे चित्रकूट के प्रमुख देवता हैं।
श्रीराम के वनवास के दौरान प्रभु इस पर्वत पर स्थान पर रुके थे
धार्मिक मान्यता है कि सभी पवित्र स्थान (अर्थात् तीर्थ) इस परिक्रमा स्थल में स्थित हैं। इस पहाड़ी के चारों ओर का परिक्रमा पथ लगभग 5 किमी लंबा है जिसमें बड़ी संख्या में मंदिर हैं। ग्रीष्म ऋतु के अलावा, पूरे वर्ष इस पहाड़ी का रंग हरा रहता है और चित्रकूट में किसी भी स्थान से देखे जाने पर धनुषाकार दिखाई देता है। श्रीराम के वनवास के दौरान प्रभु इस स्थान पर रुके थे, इस विषय में वाल्मीकि रामायण में विस्तार से बताया गया है. इन्हीं में से एक है चित्रकूट धाम में स्थित कामदगिरि पवर्त, जहां मान्यता है कि श्री राम आज भी रहते हैं।
कामद भे गिरि राम प्रसादा, अवलोकत अपहरत बिषादा। सर सरिता बन भूमि बिभागा, जनु उमगत आनँद अनुरागा॥
चित्रकूट में कामतानाथ की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है?
चित्रकूट के कामदगिरी पर्वत की जिसकी परिक्रमा लगभग 5 किलोमीटर की है. इस पहाड़ी के चारों ओर का परिक्रमा पथ लगभग 5 किमी लंबा है जिसमें बड़ी संख्या में मंदिर हैं
Source : https://chitrakoot.nic.in/hi/chitrakoot_tourism
कामतानाथ जी कौन थे और कामतानाथ क्यों प्रसिद्ध है?
कामतानाथ कामदगिरी पर्वत के साथ साथ पूरे चित्रकूट के प्रमुख देवता हैं। भगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया और कहा कि अब आप कामद हो जाएँगे और जो भी आपकी परिक्रमा करेगा. उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँगी और हमारी कृपा भी उस पर बनी रहेगी। चित्रकूट में कामदगिरि में ही भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने 11 वर्षों तक निवास किया था और यहीं पर श्री राम और भाई भरत का मिलाप भी हुआ था. कामदगिरि पर एक दर्शनीय स्थल ऐसा भी है जहां, प्रभु श्री राम के पदचिन्हों के दर्शन होते हैं।
श्रीराम और भरत जी का मिलाप
मान्यता है कि जिस स्थान पर प्रभु श्री राम के पदचिन्ह हैं, ठीक उसी स्थान पर श्री राम और भरत जी का मिलाप हुआ था. रामायण कथा में इस बात का वर्णन भी मिलता है कि जब श्री राम ने चित्रकूट से आगे बढ़ने का निर्णय लिया, तब कामदगिरि पर्वत ने यह चिंता व्यक्त की कि प्रभु के जाने के बाद चित्रकूट को कोई नहीं जानेगा. तब श्री राम यह आशीर्वाद दिया कि जो इस पर्वत की परिक्रमा करेगा, उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी. तब से इस पर्वत को कामदगिरि पर्वत’ के नाम से जाना जाने लगा।
भगवान राम ने पर्वत को दिया था वरदान
भगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया और कहा कि अब आप कामद हो जाएँगे और जो भी आपकी परिक्रमा करेगा. उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँगी और हमारी कृपा भी उस पर बनी रहेगी. इसी कारण इस पर्वत को कामदगिरि कहा जाने लगा और वहां विराजमान हुए कामतानाथ भगवान राम के ही स्वरूप हैं।
कामदगिरि पर्वत पर की थी लक्ष्मण जी ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या
इसी पहाड़ी पर लक्ष्मण जी ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. इसी तपस्या के बल पर उन्होंने रावण से हुए युद्ध में लंकेश के पुत्र मेघनाद का वध किया था. ऐसा इसलिए क्योंकि मेघनाथ की पत्नी सुलोचना को यह वरदान प्राप्त था कि उसके पति को वही प्रतापी मार सकता है, जो 12 साल तक न सोया हो और न ही कुछ खाया हो।
कामदगिरि पहाड़ी पर प्रभु श्रीराम पूजा-पाठ करते थे
चित्रकूट धाम में कामदगिरि पहाड़ी पर भगवान कामतानाथ जी का मंदिर स्थित है. जहां उनके भक्तों को उनके मुख के दर्शन होते हैं. मान्यताओं के अनुसार, यहां भगवान कामतानाथ के स्वयंभू प्रतिमा के दर्शन होते हैं और पूरा कामदगिरि पर्वत इनका शरीर है. इन्हीं के शरीर के 05 किलोमीटर की परिक्रमा भक्तों द्वारा की जाती है. कहा यह भी जाता है कि इसी स्थान पर प्रभु श्रीराम पूजा-पाठ इत्यादि करते थे.
ऐसी जगह यहां सवा वर्ष के भीतर मनोकामना पूर्ण होती है
कामतानाथ भगवान के मुख में शालिग्राम शिला स्थापित है और उनकी प्रतिमा के ठीक बगल में श्री राम के भी दर्शन होते हैं. यहां से जुड़ी एक प्रसिद्ध मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन यहां अपनी मनोकामना दोहराता है, सवा वर्ष के भीतर उनकी वह मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
चित्रकूट के दर्शनीय स्थल कौन कौन से हैं
- कामदगिरी : प्रधान धार्मिक महत्व की एक वन्य पहाड़ी, जिसे मूल चित्रकूट माना जाता है। यहीं भरत मिलाप मंदिर स्थित है।
- राम घाट : मन्दाकिनी नदी के किनारे स्थित यह घाट एक शांत तीर्थ स्थल है। इस नदी के किनारे इस स्थान कोभगवान राम, देवी सीता और भगवान लक्ष्मण के साथ संत गोस्वामी तुलसीदास का साक्षात्कार स्थल माना जाता है।
- भरत मिलाप मंदिर : भरत, अयोध्या के सिंहासन पर लौटने के लिए भगवान श्री राम को मनाने के लिए उनके वनवास के दौरान उनसे भगवान इस जगह ही मिले थे। यह कहा जाता है कि चारों भाइयों का मिलन इतना मार्मिक था कि चित्रकूट की चट्टानें भी पिघल गयीं। भगवान राम और उनके भाइयों के इन चट्टानों पर छपे पैरों के निशान अब भी देखे जा सकते हैं।
- स्फटिक शिला : जहां माता सीता ने श्रृंगार किया था। इसके अलावा, किंवदंती यह है कि यह वह जगह है जहां भगवान इंद्र के बेटे जयंत, एक कौवा के रूप में माता सीता के पैर में चोंच मारी थी। ऐसा कहा जाता है कि इस चट्टान में अभी भी राम के पैर की छाप है।
- हनुमान धारा : यह एक विशाल चट्टान के ऊपर स्थित हनुमान मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी के लंका में आग लगा कर वापस लौटने पर इस मंदिर के अंदर भगवान राम, भगवान हनुमान के साथ रहे। यहां भगवान राम ने उनके गुस्से को शांत करने में उनकी मदद की।
- गुप्त गोदावरी : पौराणिक कथा है कि भगवान राम और लक्ष्मण अपने वनवास के कुछ समय के लिए यहां रहे। गुप्त गोदावरी एक गुफा के अंदर गुफा प्रणाली है, जहाँ घुटने तक उच्च जल स्तर रहता है। बड़ी गुफा में दो पत्थर के सिंहासन हैं जो राम और लक्ष्मण से संबंधित हैं। इन गुफाओं के बाहर स्मृति चिन्ह खरीदने के लिए दुकानें हैं।
- सती अनुसूया आश्रम : अत्री ने अपनी भक्त पत्नी अनुसूया के साथ यहां ध्यान किया। कथा के अनुसार वनवास के समय भगवान राम और माता सीता इस आश्रम में सती अनुसूया के पास गए थे। सती अनसूया ने यहाँ माता सीता को शिक्षाएं दी थी
चित्रकूट घूमने कब जाना चाहिए
अगस्त, सितंबर और अक्टूबर मानसून में चित्रकूट घूमने के लिए सबसे अच्छे महीने हैं। बारिश के बाद, पूरा इलाका हरे-भरे, घने पेड़-पौधों और नदियों से जीवंत हो उठता है। मानसून के बाद यह इलाका बेहद खूबसूरत लगता है और इस समय प्रकृति अपने सबसे खूबसूरत रूप में दिखती है। दृश्यता भी बहुत कम नहीं होती।
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