Instinct and trend : वृत्ति और प्रवृत्ति दो अलग-अलग शब्द हैं जिनका अर्थ और उपयोग भिन्न होता है:
वृत्ति (Vritti): वृत्ति का अर्थ होता है किसी व्यक्ति की जीविका या पेशा। यह किसी व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों, रोजगार, या कार्यक्षेत्र से संबंधित है, जिसके द्वारा वह अपने जीवन-यापन के लिए धन अर्जित करता है। उदाहरण के लिए: शिक्षक की वृत्ति शिक्षण है, डॉक्टर की वृत्ति चिकित्सा है।
धार्मिक दृष्टि वृत्ति का अर्थ थोड़ा अलग है मुनि श्री प्रणाम सागर जी कहते हैं कि “हमारे मन में जो संकल्प -विकल्प होते हैं वो वृत्ति है।”
वृत्ति के कई भेद
वृत्ति का मतलब है जीवन या आचरण का तरीका, व्यवहार, नैतिक आचरण, आदि। वृत्ति, मानव और गैर-मानव प्रजातियों में पाई जाती है। वृत्ति को चार वर्गों में बांटा गया है: देवीयवृत्ति, मानुषीवृत्ति, पशुवृत्ति, और संतवृत्ति।
हिन्दी में वृत्ति के पांच भेद हैं – विध्यर्थ, निश्चयार्थ, संभावनार्थ, संदेहार्थ, संकेतार्थ। अंतःकरण की चार वृत्तियां होती हैं – मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार।
प्रवृत्ति (Pravritti) का अर्थ
प्रवृत्ति का अर्थ होता है किसी व्यक्ति के स्वभाव, रुचि, या मानसिकता की ओर संकेत करना। यह व्यक्ति की मानसिकता, सोच, या आदत को दर्शाता है, यानी किस प्रकार की चीजों में उसकी रुचि होती है या उसे करने की प्रेरणा मिलती है। उदाहरण के लिए: किसी की प्रवृत्ति समाज सेवा की ओर हो सकती है, या किसी की प्रवृत्ति खेलों में हो सकती है।
मुनि प्रणाम सागर जी अनुसार प्रवृत्ति “उस संकल्प-विकल्प के कारण हम जो क्रिया करते हैं वो प्रवृत्ति।”
‘हिन्दी शब्द सागर’ में प्रवृत्ति से तात्पर्य
प्रवाह, बहाव; झुकाव, मन का किसी विषय की ओर लगाव, लगन जैसे –उसकी प्रवृत्ति व्यापार की ओर नहीं है ; वार्ता, वृतांत, हाल, बात; प्रवर्तन, काम का चलना ; सांसारिक विषयों का ग्रहण, संसार के कामों में लगाव, दुनिया के धंधे में लीन होना। निवृत्ति का उलटा ; उत्पत्ति, आरम्भ ; शब्दार्थ-बोधक शक्ति ; भाग्य किस्मत ; उज्जयिनी का एक नाम।
वृति और प्रवृत्ति में यह अंतर है कि वृत्ति का मुख्य सम्बन्ध आंतर व्यापारों से और प्रवृत्ति का बाह्य व्यापारों से होता है। वृत्ति तो केवल शब्दों के द्वारा काम करती है, पर प्रवृत्ति आचार-व्यवहार के माध्यम से व्यक्त होती है। इसलिए वृत्ति तो काव्य, नाटक आदि सभी प्रकार की साहित्यिक कृतियों में होती है, परन्तु प्रवृत्ति केवल अभिनय या नाटक में होती है।” किन्तु वर्तमान के सन्दर्भ में प्रवृत्ति केवल नाटक तक सीमित न होकर साहित्य की सभी विधाओं में प्रचलित है और सबसे प्रमुख बात तो यह रही कि ‘प्रवृत्ति’ शब्द का अब ‘अर्थ-विस्तार’ हो गया। अब प्रवृत्ति कहने पर एक समय में प्रचलित किसी शैली या विषय पर रुझान से है।
विभिन्न शास्त्रों में प्रवृत्ति का अर्थ : समाजशास्त्र, दर्शन शास्त्र तथा योगशास्त्र में “प्रवृत्ति का अर्थ है –काम में लगना, निवृत्ति का अर्थ है काम से हटना। बहुधा प्रवृत्ति शब्द का प्रयोग सांसारिकता के चक्र में फँसना और निवृत्ति का अर्थ संसार से मुँह मोड़कर परलोक के चिंतन में मग्न रहना लगाया गया है। प्रवृत्ति का अर्थ संसार के झंझटों में फंसना और निवृत्ति का अर्थ संसार के झंझटों से दूर हटकर ज्ञान और वैराग्य की बातों को सोचना लगाया जाता है।” ‘मानक हिन्दी कोश’ में भी इसका सन्दर्भ देते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि -दार्शनिक और धार्मिक क्षेत्र में प्रवृत्ति को जीवन-यापन का वह प्रकार माना जाता है जिसमें मनुष्य घर-गृहस्थी सांसारिक कार्यों, सुख-भोगों आदि में प्रवृत्त रहता है। निवृत्ति का विपर्याय।
सारांश:
वृत्ति = जीविका या पेशा
प्रवृत्ति = स्वभाव, रुचि, या मानसिकता
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