धर्म मध्य प्रदेश

Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी कथा, शुभ मुहूर्त एवं तिथि

Ganesh Chaturthi 2025 : गणेशोत्सव आज से शुरू हो रहा है. यह त्योहार भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी तक चलता है. इस बार गणेश चतुर्थी का महापर्व 27 अगस्त यानि हिंदू पंचांग के अनुसार, पूजा का समय कल सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक है. गणेश चतुर्थी को गणेश महोत्सव भी कहते हैं. विशेष रूप से इस पर्व को महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में मनाया जाता है।

गणेश जी को अत्यंत प्रिय वस्तुएं

भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता कहा जाता है. शास्त्रों में वर्णन है कि गणेश जी को कुछ विशेष वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं. लाल गुड़हल का फूल, 21 दुर्वा, गुड़-चावल की खीर, सिंदूर-चंदन और पंचामृत से पूजा करने पर गणपति प्रसन्न होते हैं. इस गणेश चतुर्थी इनसे अर्चना करने से सभी विघ्न दूर होकर मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

भाद्रशुक्ल गणेश चतुर्थी व्रत कथा

स्यमन्तक मणि की कथा

एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में शौनक आदि अ‌ट्ठासी हजार ऋषियों ने शास्त्रवेत्ता सूतजी से पूछा कि हे सूतजी महाराज! सभी कार्यों की निर्विघ्न समाप्ति किस प्रकार से हो? धनोपार्जन में कैसे सफलता मिल सकती है और मनुष्यों की पुत्र, सौभाग्य एवं सम्पत्ति की वृद्धि किस प्रकार हो सकती है? पति-पत्नी में कलह भाव से बचाव, भाई-भाई में परस्पर वैमनस्य से अलगाव तथा उदासीनता से अनुकूलता कैसे मिल सकती है? विद्योपार्जन, वाणिज्य-व्यापार, कृषि कर्म एवं शासकों को अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करने में कैसे सफलता मिल सकती है? किस देवता के पूजन अर्चन से मनुष्यों को अभीष्ट की प्राप्ति हो सकती है? हे सूतजी महाराज! इन सबबातों की आप विस्तृत विवेचना कीजिए।

पार्वती जी के मैल से उत्पन्न गणेश का महत्व

सूतजी कहते हैं कि हे ऋषियों! प्राचीनकाल में जब कौरव-पाण्डवों की सेना युद्ध के लिए सन्नद्ध हुई तो उसी समय कुन्ती नन्दन युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से पूछा था। हे कृष्णजी! आप यह बतलाइये कि हमारी निर्विघ्न विजय किस प्रकार होगी? किस देवता की आराधना से हम अभीष्ट सिद्धि प्राप्त कर सकेंगे?

श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे वीर ! पार्वती जी के मैल से उत्पन्न गणेश जी की पूजा कीजिए। उनकी पूजा से आप अपने राज्य को पा जायेंगे, यह निश्चित है।

गणेश पूजन का विधान

युधिष्ठिर ने प्रश्न किया कि हे देव ! गणेश पूजन का क्या विधान है? किस तिथि को पूजा करने से वे सिद्धि देते हैं? श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे महाराज ! भादों महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को इनकी पूजा करनी चाहिए अथवा श्रावण, अगहन एवं माघ मास की चतुर्थी को भी पूजा की जा सकती है।

हे राजन युधिष्ठिर ! यदि आप में श्रद्धा भाव हो तो भादों शुक्ल चतुथी से ही गणेश जी की पूजा प्रारम्भ कर दीजिए। व्रती को चाहिए कि प्रातःकाल उठकर सफेद तिल से स्नान करें। दोपहर में सोने की मूर्ति चार तोले, दो तोले, एक तोले या आधा तोले की अपनी सामर्थ्य के अनुसार बनवावें। यदि सम्भव न हो तो चांदी की प्रतिमा ही बनवा लें। यदि ऐस न कर सकें तो मिट्टी की मूर्ति बनवा लें। परन्तु अर्थ सम्पन्न होते हुए कृपणता न करें। ये ही ‘वरविनाशक’ और ये ही ‘सिद्धिविनायक’ हैं। मनोवांछा की सिद्धि के लिए भादों शुक्ल चौथ को इनकी पूजा करें। इनकी पूजा करने से सम्पूर्ण आकांक्षाएँ पूर्ण होती हैं, एतदर्थ भूमण्डलमे उन्हें ‘लिविनायक’ कहा जाता है। ध्यान की विधि-एक दांत वाले, विस्तृत कान वाले, हाथी के समान मुख वाले, चार भुजाधारी, हाथ में पाश एवं अंकुश धारण किए हुए ‘सिद्धविनायक’ गणेश जी का हम ध्यान करते हैं। एकाग्रचित्त से पूजन करें। पंचामृत से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान करावें ।

तदनन्तर भक्ति पूर्वक गणेश जी को गन्ध चढ़ावें, आवाहन करके पाद्य, अर्घ्य आदि देने के बाद दो लाल वस्त्र चढ़ाना चाहिए। तत्पश्चात पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। फिर पान के ऊपर कुछ मात्रा में सोना रखकर (अथवा रुपया, अठन्नी आदि) चढ़ावें । इसके बाद गणेश जी को इक्कीस दूब चढ़ावें ।

निम्नांकित नामों द्वारा भक्तिपूर्वक गणेश जी की पूजा दूर्वा से करें। हे गणाधिप ! हे उमापुत्र ! हे पाप के नाशक ! हे विनायक ! हे ईशनन्दन ! हे सर्वसिद्धिदाता ! हे एकदन्त ! हे गजमुख ! हे मूषकवाहन ! हे स्कन्दकुमार के ज्येष्ठ भ्राता ! हे गजानन महाराज ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। रोली, पुष्पएवं अक्षत के साथ दो-दो दूब लेकर प्रत्येक नाम का उच्चारण करते हुए अलग-अलग नामों से दूब अर्पित करें। हे देवाधिदेव ! आप मेरे दूब को स्वीकार करें, मैं आपकी बारम्बार विनती कर रहा हूँ। इसी प्रकार भुना हुआ गेहूँ और गुड़ अर्थात गुड़ धनिया, जो गणेश जी को परमप्रिय है, चढ़ावें। इसके बाद शुद्ध घी से निर्मित इक्कीस लड्डू हाथ में लेकर हे कुरुकुल प्रदीप ! कहकर गणेश जी के आगे रख दें। उनमें से दस लड्डू ब्राह्मण को दान कर दें और दस लड्डू अपने भोजन के निमित्त रख लें। शेष लड्डू को गणेश जी के सामने नैवेद्य के रूप में पड़ा रहने दें। सुवर्ण प्रतिमा भी ब्राह्मण को दान दे दें। सभी कर्म करने के बाद अपने इष्ट देव का पूजन करें। तदनन्तर ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें । स्मरण रहे कि उस दिन मूंगफली, वनस्पति, बरें आदि के तेल का उपयोग न करें। अधोवस्त्र और उत्तरीय वस्त्र के सहित गणेश जी की मूर्ति को सम्पूर्ण विघ्न निवारण के लिए विद्वान ब्राह्मण को दान कर दें।

हे धर्मराज युधिष्ठिर ! इस प्रकार गणेश जी की पूजा करने से आप सभी पाण्डवों की विजय होगी। इसमें सन्देह की कोई बात नहीं है, यह मैं बिल्कुल सत्य कह रहा हूँ। गुरु से दीक्षा लेने के सनय वैष्णव आदि प्रारम्भ में गणेश पूजन करते हैं। गणेश जी की पूजा करने से विष्णु, शिव, सूर्य, पार्वती (दुर्गा), अग्नि आदि विशिष्ट देवों की भी पूजा हो जाती है। इसमें सन्देह नहीं है। इनके पूजन से चण्डिका आदि मातृगण सभी प्रसन्न होते हैं। हे ऋषियों! भक्तिपूर्वक सिद्धिविनायक गणेश जी की पूजा करने से, उनकी कृपा के फलस्वरूप मनुष्यों के सभी कार्य पूर्ण होते हैं।

भाद्र शुक्ल गणेश चतुर्थी की पूजा शिव लोक में हुई है। इस दिन स्नान, दान, उपवास, पूजन आदि करने से गणेश जी की अनुकम्पा से शताधिक फल होता है। हे युधिष्ठिर ! इस दिन चन्द्र दर्शन को निषेध किया गया है। इसलिए अपने कल्याण की कामना से दोपहर में ही पूजा कर लेनी चाहिए।

सिंह राशि की संक्रान्ति में, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्र दर्शन करने से (चोरी, व्यभिचार, हत्या आदि का) मिथ्या कलंकित होना पड़ता है। इसलिए आज के दिन चन्द्र दर्शन करना वर्जित है। यदि भूल से चन्द्र दर्शन हो जाय तो ऐसा कहें- ‘सिंह ने प्रसेनजित को मार डाला और जाम्बवान ने सिंह को यमालय भेज दिया। हे बेटा! रोओ मत, तुम्हारी स्यमन्तक मणि यह है।

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