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आयुर्वेद में “पंचकोल” क्या है इसके क्या फायदे हैं

आयुर्वेद में “पंचकोल” पाँच औषधीय जड़ी-बूटियों का एक समूह है, जिसे पाचन को सुधारने, गैस और अपच जैसी समस्याओं को दूर करने और अग्नि (पाचन शक्ति) को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है।

Patanjali Divya Panchkol Churna बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः बदहजमी, भूख न लगना, बवासीर के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।

आयुर्वेद में पंचकोल में निम्नलिखित पाँच तत्व शामिल होते हैं

पिप्पली (Piper longum) – यह एक प्रसिद्ध जड़ी-बूटी है जो पाचन को सुधारने और गैस को निकालने में मदद करती है। पीपली चूर्ण का सेवन बुखार के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है क्योंकि पीपली में आयुर्वेद के अनुसार ज्वरहर गुण होता है जिससे पीपली बुखार को कम करने में मदद करती है।

पिप्पली मूल (Piper longum root) – यह पिप्पली का जड़ है, जो पाचन शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ शरीर की अतिरिक्त वसा को घटाने में सहायक होता है। इसका उपयोग अक्सर खांसी, अस्थमा, अपच और संधिशोथ से जुड़े लक्षणों को कम करने के लिए किया जाता है।

चव्य (Piper chaba) – चव्य भी एक प्रकार की काली मिर्च है, जो पाचन को बढ़ावा देने और शरीर की तासीर को गर्म रखने में मदद करता है। चव्य की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से बदहजमी में लाभ होता है। सर्दी-खांसी के इलाज में चाब में फायदा ले सकते हैं।

चित्रक (Plumbago zeylanica) – यह एक शक्तिशाली पाचन जड़ी-बूटी है, जो अपच और कब्ज को दूर करने में सहायक होती है। इसका उपयोग पुरानी मासिक धर्म संबंधी विकारों, वायरल मस्सों और तंत्रिका तंत्र की पुरानी बीमारियों को ठीक करने में भी किया जाता है। चित्रक का उपयोग आंतों की समस्याओं, पेचिश, ल्यूकोडर्मा, सूजन, बवासीर, ब्रोंकाइटिस, खुजली, यकृत के रोगों और खपत के इलाज में किया जाता है।

सोंठ (Zingiber officinale) – सूखी अदरक, जिसे सोंठ के नाम से जाना जाता है, पाचन तंत्र को सुधारने और गैस की समस्या को कम करने में मदद करती है। गले में खराश, इन्फेक्शन और जुकाम, पेट में गैस और अपच आदि से छुटकारा पाने के लिए इसका इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है।

आयुर्वेद में पंचकोल का उपयोग पाचन संबंधी विकारों के उपचार में किया जाता है, और इसे आमतौर पर चूर्ण के रूप में लिया जाता है। इसका सेवन सामान्यतः चिकित्सक की सलाह अनुसार ही करना चाहिए।

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