एक समै एकांत वन में करत सिंगार परस्पर दोई।
वे उनके वे उनके प्रतिबिंबनि देखत रहत परस्पर भोई |
जैसे नीके आजु बने ऐसे न बने आरसी सब झूठी परी कैसीयैब कोई ।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी रीझि परस्पर प्रीति नोई ॥
एक समै एकांत वन में करत सिंगार परस्पर दोई पद का हिन्दी अर्थ
इस पद का विस्तार से अर्थ और व्याख्या निम्नलिखित है:
Shri Radha Krishna prem Kelimal pad in hindi : ये श्री कलीमल का हिन्दी का एक पद इसमें प्रियाप्रियतम का निकुंज – विहार यानि लाड़िलीलाल का स्वरूप वर्णन, उनका श्रृंगार, उनके नृत्य गीत, उनकी परस्पर प्रीति और सुरति, श्री वृन्दावन का ऋतु – सौन्दर्य और विभिन्न ऋतुओं में युगल केलि, मान और सहचरी द्वारा लाडिली जी को मनाना जैसे श्रृंगार रस के विषय वर्णित है।
पद का वर्णन:
- “एक समय एकांत वन में करत सिंगार परस्पर दोई।“
यहाँ श्रीराधा और श्रीकृष्ण का वर्णन है, जो एकांत वन में एक-दूसरे का सिंगार कर रहे हैं। यह दृश्य उनकी गहन आत्मीयता और प्रेम को दर्शाता है। - “वे उनके वे उनके प्रतिबिंबनि देखत रहत परस्पर भए।” श्रीकृष्ण और श्रीराधा एक-दूसरे को देखकर अपने प्रतिबिंब में खो जाते हैं। यह उनके प्रेम की अद्वितीय गहराई को इंगित करता है, जहाँ वे एक-दूसरे में लीन हो जाते हैं।
- “जैसे नीके आजु बने ऐसे न बने, आरसी सब झूठी परी कैसी ऐव कोई।”
यह पंक्ति कहती है कि आज का सिंगार और सजावट इतनी अनुपम है कि दर्पण (आरसी) भी इसे झूठा साबित कर रहा है। यह प्रेम का ऐसा रूप है, जिसमें बाहरी सजावट गौण हो जाती है और भावनात्मक सौंदर्य मुख्य हो जाता है। - “श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी रीझि परस्पर प्रीति दोई।”
यहाँ कवि श्रीहरिदास कहते हैं कि श्रीराधा और श्रीकृष्ण, जो कुंजबिहारी हैं, एक-दूसरे के प्रेम में इतने मग्न हैं कि उनका प्रेम पूरे ब्रह्मांड के लिए प्रेरणा बनता है।
विस्तृत व्याख्या:
इस पद में राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का वर्णन किया गया है। यह प्रेम आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। कवि हरिदास ने इस पद में यह दिखाया है कि जब प्रेम शुद्ध और आत्मीय होता है, तो बाहरी सजावट और रूप-रंग महत्वहीन हो जाते हैं।
“करत सिंगार परस्पर दोई” में यह दिखाया गया है कि राधा-कृष्ण केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से भी एक-दूसरे को सवार रहे हैं।
“प्रतिबिंबनि देखत” यह इंगित करता है कि वे एक-दूसरे में अपना प्रतिबिंब देखते हैं, जो यह दर्शाता है कि उनके अस्तित्व भी एक-दूसरे में समाहित हैं।
“आरसी सब झूठी परी” दर्पण भी उनके दिव्य प्रेम की गहराई को व्यक्त करने में असमर्थ है।
भावार्थ:
यह पद दर्शाता है कि राधा-कृष्ण का प्रेम भौतिकता से परे है और यह हमें प्रेम की वास्तविक परिभाषा सिखाता है। यह प्रेम आत्मा का परमात्मा के साथ एकात्मता का प्रतीक है, जहाँ सभी सांसारिक तत्व गौण हो जाते हैं।
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