आयुर्वेद के अंतर्गत आज हम बात करेंगे शल्य चिकित्सा के जनक माने जाने वाले आचार्य सुश्रुत के बारे में, जिन्होंने चिकित्सा और शल्य चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ सुश्रुत संहिता की रचना की भारत के प्रथम शल्य चिकित्सक माने गए हैं।
सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है। आचार्य सुश्रुत को मानव शरीर की जटिलताओं का गहन ज्ञान था, और उन्होंने शल्य चिकित्सा में विभिन्न नवीन तकनीकों का विकास किया। जिनमें प्लास्टिक सर्जरी और मोतियाबिंद की सर्जरी भी शामिल है।
सुश्रुत संहिता” में उन्होंने शल्य चिकित्सा, औषधि विज्ञान, शरीर रचना (anatomy), प्रसूतिशास्त्र (obstetrics), और रोगों के उपचार से संबंधित विस्तृत जानकारी दी है। इस ग्रंथ में लगभग 300 से अधिक बीमारियों का वर्णन, 120 से अधिक सर्जिकल उपकरणों का विवरण दिया गया है।
सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी
एक बार आधी रात के समय सुश्रुत को दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। उन्होंने दीपक हाथ में लिया और दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी। उस व्यक्ति की आंखों से अश्रु-धारा बह रही थी और नाक कटी हुई थी। उसकी नाक से तीव्र रक्त-स्राव हो रहा था। व्यक्ति ने आचार्य सुश्रुत से सहायता के लिए विनती की। सुश्रुत ने उसे अन्दर आने के लिए कहा। उन्होंने उसे शांत रहने को कहा और दिलासा दिया कि सब ठीक हो जायेगा। वे अजनबी व्यक्ति को एक साफ और स्वच्छ कमरे में ले गए। कमरे की दीवार पर शल्य क्रिया के लिए आवश्यक उपकरण टंगे थे। उन्होंने अजनबी के चेहरे को औषधीय रस से धोया और उसे एक आसन पर बैठाया। उसको एक गिलास में शोमरस भरकर सेवन करने को कहा और स्वयं शल्य क्रिया की तैयारी में लग गए। उन्होंने एक पत्ते द्वारा जख्मी व्यक्ति की नाक का नाप लिया और दीवार से एक चाकू व चिमटी उतारी। चाकू और चिमटी की मदद से व्यक्ति के गाल से एक मांस का टुकड़ा काटकर उसे उसकी नाक पर प्रत्यारोपित कर दिया। इस क्रिया में व्यक्ति को हुए दर्द का शौमरस ने महसूस नहीं होने दिया। इसके बाद उन्होंने नाक पर टांके लगाकर औषधियों का लेप कर दिया। व्यक्ति को नियमित रूप से औषाधियां लेने का निर्देश देकर सुश्रुत ने उसे घर जाने के लिए कहा।
सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ऑपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डी का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे। सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे।
उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया। प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे। मानव शरीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे। सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया। उन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर संरचना, काया-चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी।
सुश्रुत संहिता के दोषभावखंडन में लिखा है कि जल में जल, वायु और अग्नि तीनों मिलकर रहते हैं। यदि जल में अग्नि न हो तो जल बर्फ बन जाए और यदि जल में वायु न हो तो जलचर जीव जैसे मछली सांस न ले पाए।
आचार्य सुश्रुत द्वारा डिजाइन किए गए कुछ प्रमुख सर्जिकल उपकरण निम्नलिखित हैं:
शलाका : यह एक प्रकार की सर्जिकल सुई थी, जिसका उपयोग टांके लगाने और त्वचा के कटाव को ठीक करने के लिए किया जाता था।
कुथारिका : यह एक छोटी छुरी (knife) थी, जिसका उपयोग त्वचा और मांसपेशियों को काटने के लिए किया जाता था।
तलवारिका : यह एक छोटे आकार की तलवार थी, जिसका उपयोग बड़े और गहरे कटाव को बनाने के लिए किया जाता था।
अर्धाधारा : यह एक आधी चाकू के आकार का उपकरण था, जिसका उपयोग घावों को साफ करने और मृत त्वचा को हटाने के लिए किया जाता था।
सुई : यह एक प्रकार की सुई थी, जिसका उपयोग सर्जिकल सिलाई (suturing) के लिए किया जाता था।
दंष्ट्रिका : यह एक प्रकार की चिमटी थी, जिसका उपयोग दांतों को खींचने के लिए किया जाता था।
आचार्य सुश्रुत द्वारा डिजाइन किए गए ये उपकरण आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भी आधारभूत माने जाते हैं। उनके द्वारा विकसित तकनीकें और उपकरण आज भी शल्य चिकित्सा के कई पहलुओं में प्रासंगिक हैं।
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