धर्म

वृश्चिक संक्रांति भगवान सूर्य देव की उपासना का दिन, तिथि और महत्व

Vrishchik Sankranti 2024: वृश्चिक संक्रांति भगवान सूर्य देव की उपासना का दिन है। कार्तिक मास में जब सूर्यदेव तुला राशि से वृश्चिक राशि में गोचर करते हैं, तो उस संक्रांति को वृश्चिक संक्रांति कहते है।

वृश्चिक संक्रांति कब है

वैदिक पंचाग के अनुसार आत्मा के कारक सूर्य देव 16 नवंबर 2024 को सुबह 07 बजकर 41 मिनट पर तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे। इस दौरान सूर्य पहले 19 नवंबर 2024 को अनुराधा नक्षत्र में गोचर करेंगे जिसके बाद 2 दिसंबर 2024 को ज्येष्ठा नक्षत्र में गोचर करेंगे। इसलिए वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर को होगी।

वृश्‍चिक संक्रांति का महत्व:

वृश्चिक राशि सभी राशियों में सबसे संवेदनशील राशि है जो शरीर में तामसिक ऊर्जा, घटना-दुर्घटना, सर्जरी, जीवन के उतार-चढ़ाव को प्रभावित और नियंत्रित करती है। यह जीवन के छिपे रहस्यों का प्रतिनिधित्व भी करती है। वृश्चिक राशि खनिज और भूमि संसाधनों जैसे कि पेट्रोलियम तेल, गैस और रत्न आदि के लिए कारक होती है। वृश्‍चिक राशि में सूर्य अनिश्चित परिणाम देता है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।

वृश्चिक संक्रांति पूजा विधि

वृश्चिक संक्रांति के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करें। तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें लाल चंदन, रोली, हल्दी और सिंदूर मिलाकर भगवान सूर्य को अर्पित करें। उसके बाद धूप-दीप से सूर्य देव की आरती करें और सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें. फिर घी और लाल चंदन का लेप लगाकर भगवान के सामने दीपक जलाएं. सूर्य देव को लाल फूल अर्पित करें। अंत में गुड़ से बने हलवा का भोग लगाएं।

वृश्चिक संक्रांति पर क्या करें

  • सूर्य देवता को अर्घ्य दें।
  • किसी पवित्र नदी जैसे गंगा नदी में स्नान करें।
  • ब्राह्मणों और गरीब जरूरतमंदों को दान दें।
  • सूर्य मंत्र ऊं सूर्याय नमः का जप करें, इस दिन हवन और पूजा-अर्चना करें

सूर्य को अर्घ्य देने का समय
प्रात:काल 6 बजकर 45 मिनट के बाद।

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