Protecting Yourself from ‘Digital Arrest’ Scams
डिजिटल अरेस्ट एक साइबर अपराध है, जिसमें अपराधी किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने का झूठा दावा करते हैं. यह ऑनलाइन ठगी का एक नया तरीका है। भारत में डिजिटल अरेस्ट का मुद्दा इतना गंभीर है कि 27 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी इसका जि़क्र किया था. पीएम मोदी ने इसे लेकर लोगों से सावधान रहने को कहा था।
कैसे होता है डिजिटल अरेस्ट? ये कैसे काम करता है?
Digital Arrest: डिजिटल अरेस्ट एक साइबर अपराध है, जिसमें अपराधी किसी व्यक्ति की सोशल मीडिया प्रोफाइल से जानकारी चुराकर उसे मानसिक रूप से परेशान करते हैं। डिजिटल अरेस्ट के दौरान साइबर ठग नकली पुलिस अधिकारी बनकर लोगों को धमकाते हैं और अपना शिकार बनाते हैं। इस दौरान वे लोगों से वीडियो कॉल पर लगातार बने रहने के लिए कहते हैं और इसी बीच केस को खत्म करने के लिए पैसे भी ट्रांसफर करवाते रहते हैं।
अपराधी धमकी देते हैं कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे पीड़ित की तस्वीरें या जानकारी सार्वजनिक कर देंगे। यह अपराध न केवल मानसिक दबाव डालता है। कई बार यह भी दावा किया जाता है कि वे कस्टम विभाग से बोल रहे हैं और आपके नाम से कोई पार्सल आया है जिसमें ड्रग्स या प्रतिबंधित चीजें हैं।
घोटाला कैसे काम करता है?
- पूरे स्कैम की शुरुआत क सरल मैसेज, ईमेल, या व्हाट्सऐप संदेश से होती है. जिसमें दावा किया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों में संलग्न है।
- घोटालेबाज अपने पीड़ितों में भय पैदा करने के लिए गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं।
- वे प्रायः पुलिस अधिकारी या अन्य कानून प्रवर्तन अधिकारी बनकर, आधिकारिक लगने वाले शीर्षक और शब्दजाल का प्रयोग करते हैं।
- पीड़ितों पर साइबर अपराध या वित्तीय धोखाधड़ी जैसे विभिन्न अपराधों का झूठा आरोप लगाया जाता है।
- कानूनी कार्रवाई करने की धमकी दी जाती है और दावा किया जाता है कि पूछताछ होने के दौरान उसे वीडियो कॉल पर ही रहना होगा और वह किसी और से बातचीत नहीं कर सकता है, जब तक कि उसके दस्तावेज आदि की पुष्टि नहीं होती है।
- मामला शांत करने के लिए बातचीत की जाती है जिसमें उससे बड़ी रकम देने को कहा जाता है. ये पैसे ऐसे अकाउंट में डलवाए जाते हैं जिनका अपराधियों की पहचान से कोई लेना देना नहीं होता है और पैसा भी वहां से तुरंत निकाल कर ये लोग गायब हो जाते हैं।
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें?
- डिजिटल अरेस्ट से बचने का आसान रास्ता जानकारी है। इसकी शुरुआत ही आपके डर के साथ होती है। ऐसे में यदि आपके पास भी इस तरह की धमकी वाले फोन कॉल आते हैं तो आपको डरने की जरूरत नहीं है।
- डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए आपका सजग और सावधान रहना बेहद जरूरी है। किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें. संदिग्ध कॉल या वीडियो कॉल को पूरी तरह नजरअंदाज करें।
- वीडियो कॉल करने वाले को गौर से देखें तो समझ आ जाता है कि वह कोई फ्रॉड है।
- कभी किसी अनजान नंबर से आई वॉट्सऐप कॉल या वीडियो कॉल को न उठाएं. अगर गलती से उठा भी लिया है तो ज्यादा देर बात न करके फोन काट दीजिए।
- याद रखें कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कुछ नहीं होता है. कोई वीडियो कॉल से आपको अरेस्ट नहीं कर सकता. पूरी दुनिया में ऐसा कोई कानून नहीं है।
Digital Arrest से बचने के लिए करें ये काम
- सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि कोई भी सरकारी जांच एजेंसी या पुलिस आपको कॉल या वीडियो कॉल पर धमकी नहीं देती है.
- जांस एजेंसी और पुलिस कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई करते हैं. इसलिए अगर आपके पास ऐसा कोई कॉल या वीडियो कॉल आता है तो सतर्क हो जाएं.
- इस तरह के डराने व धमकी देने वाले कॉल की सूचना तुरंत अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन को दें.
- इसके बाद 1930 नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन पर कॉल करके शिकायत दर्ज कराएं.
- आप चाहें तो सोशल मीडिया के माध्यम से भी Digital Arrest की शिकायत दर्ज कर सकते हैं. इसके लिए आपको सोशल मीडिया साइट एक्स पर @cyberdost पर पोस्ट करना होगा.
डिजिटल अरेस्ट पर वीडियो कॉल आने पर क्या करें
यदि कोई मैसेज या ई-मेल आता है तो उसे सबूत के तौर पर पुलिस को दें। यदि किसी कारण आपने कॉल रिसीव कर लिया और आपको वीडियो कॉल पर कोई धमकी देने लगा तो स्क्रीन रिकॉर्डिंग के जरिए वीडियो कॉल को रिकॉर्ड करें और शिकायत करें। किसी भी कीमत पर डरें नहीं और पैसे तो बिलकुल भी ना भेजें।
डिजिटल अरेस्ट से बचना है तो सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी न डालें
साइबर एक्सपर्ट्स के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट में ज्यादातर उन्हें निशाना बनते हैं जो कानून- व्यवस्था का सम्मान करते हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर पल-पल की अपडेट और तस्वीरें शेयर करने वाले लोग भी साइबर अपराधियों का आसान शिकार बन रहे हैं।
ज्यादातर सीनियर सिटीजन को करते हैं टारगेट
डिजिटल अरेस्ट करने वाले लोग सोशल मीडिया से टारगेट करते हैं, वहीं पर शिकार खोजते हैं और जानकारी निकालते हैं. ज्यादातर सीनियर सिटीजन को टारगेट कर रहे हैं जो अच्छी जॉब में रह चुके हैं। मेजर जनरल या फिर डायरेक्टर जनरल से लेकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, साइबर जालसाज उन्हें निशाना बनाते हैं जो कानून से डरते हैं और पैसों की डिमांड पूरी कर सकते हैं।
सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा पोस्टिंग न करें
डिजिटल अरेस्ट के लिए विक्टिम ढूंढने से पहले अपराधी लोग सोशल मीडिया पर प्रोफाइलिंग करते हैं. इसके लिए सबसे बड़ा दोषी है सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा पोस्टिंग और अनजान लोगों से फ्रेंडशिप, जिसको व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते उसको सोशल मीडिया पर जोड़ने की जोड़ने की सलाह नहीं दी जाती है।
डिजिटल अरेस्ट के मामले में पुलिस की चुनौतियां
- साइबर क्राइम के मामलों में अपराधी फेक केवाईसी का इस्तेमाल करते हैं या फिर किसी गरीब जैसे स्ट्रीट वेंडर वगैरह का अकाउंट नंबर लेकर ऑपरेट करते हैं. ऐसे में असल अपराधी तक पहुंच जटिल हो जाती है।
- ऐसे मामलों में पुलिस को आसानी से सफलता नहीं मिलती, क्योंकि जिस स्तर का सपोर्ट सिस्टम चाहिए, इंवेस्टिगेशन स्किल और संसाधन चाहिए वह पुलिस के पास नहीं हैं।
- डिजिटल अरेस्ट में शामिल सरगना अधिकतर दक्षिणपूर्व एशियाई देश- म्यांमार, लाओस और कंबोडिया से इसे अंजाम देते हैं।
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