ठाकुर जी के हरी मिर्च खाने की कथा बाल गोपाल की मधुर लीलाओं में से एक है। यह कथा दिखाती है कि कैसे एक नन्हा बालक अपने बड़ों की नकल करता है और कैसे प्रेमवश गलती भी कर बैठता है।
कथा कुछ इस प्रकार है:
नंद बाबा को भोजन में हरी मिर्च बहुत पसंद थी, जिसे वह मैया यशोदा से छिपकर खाते थे, ताकि कहीं कान्हा को मिर्च ना लग जाए। जब यशोदा मैया कान्हा को भोजन कराती थीं, तब वे नंद बाबा के लिए भी हरी मिर्च परोस देती थीं। नंद बाबा उसे छुपाकर खा लेते थे।
एक दिन कान्हा की नजर उस हरी मिर्च पर पड़ गई। उन्हें लगा कि यह कोई स्वादिष्ट मिठाई है, जिसे बाबा उनसे छिपा रहे हैं। दूसरे दिन कान्हा ने योजना बना ली कि वे वह हरी मिर्च खाकर ही रहेंगे।
जब यशोदा मैया ने भोजन परोसा, तो कान्हा ने बहाना बनाया कि वे भोजन नहीं खाएंगे। जैसे ही नंद बाबा मिर्च खाने लगे, कान्हा ने मौका देखकर वह मिर्च उठा ली और जल्दी-जल्दी चबाकर खा गए।
जैसे ही कान्हा ने मिर्च खाई, उनका मुँह जलने लगा और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। नंद बाबा और यशोदा मैया यह देखकर परेशान हो गए। उन्होंने कान्हा को पानी और दही दिया, ताकि उनका मुँह ठीक हो सके।
इस लीला से यह सीख मिलती है कि बच्चों के सामने कुछ भी छुपाना मुश्किल है, और वे अक्सर अपने बड़ों की नकल करते हैं। यह कथा भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की मधुरता और उनके भोलापन को दर्शाती है।
आइए अब हम आपको एक और प्यारी सी कहानी सुनते हैं!
जब ठाकुर जी ने खाई हरी मिर्ची – एक अद्भुत लीला
कहते हैं, भगवान की लीलाएं हमेशा अलौकिक होती हैं। कभी वे माखन चुराने वाले नटखट बालक बन जाते हैं, तो कभी अपने भक्तों की भावना देखकर स्वयं उनके बीच उतर आते हैं। ऐसी ही एक प्यारी कहानी है — “जब ठाकुर जी ने खाई हरी मिर्ची।”
ब्रज के पास के एक छोटे से गाँव में एक वृद्ध दंपति रहते थे — राधेश्याम और उनकी पत्नी गौरी। दोनों दिन-रात ठाकुर जी की सेवा में लगे रहते। उनका घर भले ही छोटा था, पर प्रेम बहुत बड़ा था। हर दिन वे ठाकुर जी को ताज़ा भोग लगाते — माखन, मिश्री, दाल-बाटी, और कई बार मिर्ची का परांठा भी।
एक दिन गौरी अम्मा रसोई में परांठे बना रही थीं। उन्होंने देखा कि सब्जी में गलती से हरी मिर्ची ज़्यादा पड़ गई। सोचा, “भोग में इतनी मिर्ची कौन खाएगा?” लेकिन ठाकुर जी के लिए तो सब प्रेम का प्रश्न था। उन्होंने वही सब्जी भोग में रख दी।
भोग लगाया गया, घंटी बजी, और राधेश्याम बोले —
“ठाकुर जी, आज मिर्ची थोड़ी ज़्यादा है, संभलकर खाइएगा।” यह कहते हुए दोनों हँस पड़े।
और फिर हुआ चमत्कार!
भोग के बाद जब वे थाली हटाने लगे, तो देखा — थाली पूरी खाली! ना दाल, ना रोटी, ना मिर्च — सब गायब!
गौरी अम्मा चौंकी — “अरे, आज तो ठाकुर जी ने पूरी मिर्ची खा ली! ये कैसे हुआ?”
उसी रात अम्मा ने सपना देखा। ठाकुर जी मुस्कुराते हुए बोले —
“अम्मा, तुम तो डर गई थीं मिर्च देखकर, पर तुम्हारे प्रेम की मिठास ने सारी तीखी मिर्च भी मीठी कर दी।”
कभी-कभी भगवान हमारी छोटी-सी गलती को भी अपनी लीला में बदल देते हैं।हरी मिर्ची भी जब प्रेम से चढ़ाई जाए, तो वह भी भोग बन जाती है।क्योंकि —
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