धर्म

कौन होते हैं नागा साधु, क्या दिनचर्या और ब्रह्मचर्य नियम

कुंभ से कहां चले जाते हैं साधु-संन्यासी,

Who is the Naga Sadhu? बहुत से नागा संन्यासी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जूनागढ़ की गुफाओं या पहाड़ियों में चले जाएंगे। वह बाहरी दुनिया से लगभग पूरी तरह से कट जाते हैं। नागा संन्यासी इन गुफाओं में महीनों रहेंगे और फिर किसी दूसरी गुफा में चले जाएंगे।
इनका मुख्य ठिकाना हिमालय की गुफाएं और कंदराएं हैं। कुछ नागा साधु नेपाल और तिब्बत के कुछ दूरस्थ इलाकों में भी रहते हैं। वहां रहकर तपस्या करते हैं। महिला नागा अपने मठों में ही रहती हैं।

नागा शब्द संस्कृत के ‘नग’ से बना है। नग मतलब पहाड़। यानी पहाड़ों या गुफाओं में रहकर तपस्या करने वाले नागा कहलाते हैं। 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने दशनामी संप्रदाय की शुरुआत की। ज्यादातर नागा संन्यासी इसी संप्रदाय से आते हैं। नागा साधुओं को दिगंबर भी कहा जाता है। नागा साधु धर्म और समाज की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।

नागा साधु से जुड़ी दशनामी संप्रदाय क्या है?

सनातन धर्म की रक्षा के लिए आदि शंकराचार्य ने नागा फौज तैयार की थी। नागा साधु शिव स्वरूप हैं। इन संन्यासियों को दीक्षा देते वक्त दस नामों गिरि, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती से जोड़ा जाता है। इसलिए नागा साधुओं को दशनामी भी कहा जाता है।

नागा साधु बनने के लिए क्या साधना करना पड़ती है?

नागा बनने के दौरान उसे तीन दिन तक उपवास रखना होता है। सिर्फ जल ही दिया जाता है। अपने जीवन में किए गए अच्छे कर्म और बुरे कर्म दोनों का लेखा-जोखा देना पड़ता है। उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं।

महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें उसे सिर के बाल कटवाने होते हैं। परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करना होता है। इसके बाद गंगा घाट पर ले जाकर 108 बार डुबकी लगवाई जाती है।

नागा साधु के लिंग तोड़ने का रस्म

नागा साधु बनने के पहली रात भी रस्म होते हैं। धर्मध्वजा के नीचे ओमकार मंत्र जाप के लिए पंजों पर खड़ा होना होता है। दिगंबर गुरु अपने अंगूठे पर रुद्राक्ष लेकर नागा बनने वाले के जननांग को तीन झटके देकर खींच देते हैं। इसके बाद वह नागा संन्यासी बन जाते हैं। ये एक प्रक्रिया है ताकि साधु काम-वासना आदि से संबंध तोड़ लें। साथ ही नागा साधु धातु (लोहा, चांदी आदि) से बने लंगोट पहनते हैं।

नागा साधु का श्रृंगार और आभूषण

नागा साधु आम तौर पर निर्वस्त्र रहते हैं। शरीर पर जो भस्म लगाते हैं यही उनकी वेशभूषा होती है। नागा साधु स्नान के बाद नागा शरीर पर भस्म लगाते हैं। ये श्मशान की चिता से मिलती है। नहीं मिलने पर हवन कुंड से बनाई भस्म लगाते हैं। लेकिन जैसे ही कुंभ मेला खत्म होता है कुछ नागा साधु कभी-कभी लंगोट या वस्त्र धारण करते हैं, लेकिन यह उनकी नियमित वेशभूषा नहीं होती।

नागा साधु रुद्राक्ष को शिव का प्रतीक मानते हैं, इसलिए अपने शरीर पर धारण करते हैं। माथे पर चंदन-रोली-हल्दी का लेप लगाते हैं। पैरों में कड़ा या छल्ला पहनते हैं। जटा भी नागा साधु का विशेष आभूषण माना गया है। ये जटा उनके गुरु के निधन के बाद ही कटवाते हैं।

नागा साधुओं की दिनचर्या क्या है?

नागा साधुओं की दिनचर्या बेहद कठिन होती है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और फिर अपनी साधना में लीन हो जाते हैं। वे दिनभर जप, तप और ध्यान करते हैं। उनको नींद और भूख पर भी काबू करना होता है। वह रात-दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करते हैं। वह भी भिक्षा मांगकर ।

एक नागा साधु को सिर्फ सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो भूखा रहना पड़ता है। तपस्या के दौरान वह भोजन के लिए पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर रहते हैं। फल, कंद-मूल, जड़ी-बूटियां और पत्तियां खाते हैं। कुछ नागा साधु दूध और सूखे मेवों का भी सेवन करते हैं। नागा साधु केवल जमीन पर ही सोते हैं। सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं करते हैं।

नागा साधु अपने साथियों को कैसे पहचाने हैं?

असली और नकली नागा साधु की पहचान के लिए इनकी अपनी भाषा होती है यदि कोई नकली साधु बन कर इनके बीच आता है तो ये फौरन पहचान ले हैं।
नागा साधु की भाषा के कुछ उदाहरण : नागा साधु आटे को भस्मी, दाल को पनियाराम, लहसुन को पाताल लौंग, प्याज को लड्डूराम कहते हैं। नमक को रामरस, मिर्च को लंकाराम, घी को पानी और रोटी को रोटीराम कहते हैं। अखाड़ों में होने वाली बैठक को ‘चेहरा’ कहा जाता है। जहां अखाड़े की कीमती चीजें रखी जाती हैं, उसे मोहरा कहते हैं।

क्या नागा साधु शस्त्र रख सकते हैं?

नागा साधु दो तरह के होते हैं शास्त्रधारी एवं शस्त्रधारी।
पहले नागा साधु केवल शास्त्र अपने पास रखते थे वो अध्यात्म जीवन जीना ही पसंद करते थे मगर कलयुगी लोगों को वजह से बाद में श्रृंगेरी मठ ने शस्त्र-अस्त्र वाले नागा साधुओं की फौज तैयार की। पहले इसमें सिर्फ क्षत्रिय शामिल होते थे। बाद में जातियों का बैरियर हटा दिया गया।

कितने तरह के होते हैं नागा साधु ?

चार जगह लगने वाले कुंभ में जगह के हिसाब से नागा साधुओं को नाम दिए जाते हैं। प्रयाग के कुंभ में नागा साधु बनने वाले को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा कहा जाता है।

नागा साधुओं की पूजा विधि:

  • नागा साधुओं की पूजा में हठ योग और कठिन तपस्या का विशेष महत्व है।
  • नागा साधु शिवलिंग पर भस्म चढ़ाने के बाद, उसे अपने शरीर पर लगाते हैं।
  • नागा साधुओं का मानना है कि शिवलिंग पर भस्म चढ़ाने से शिव ऊर्जा का संचार होता है।

नागा साधु से संबंधित प्रश्न उत्तर

नागा साधु किसकी पूजा करते हैं?
नागा साधुओं को शिवजी का स्वरूप कहा गया है। नागा साधु भगवान शिव की पूजा करते हैं. वे शिवलिंग पर भस्म, जल, और बेलपत्र चढ़ाते हैं. नागा साधुओं की पूजा में अग्नि और भस्म का विशेष महत्व है।

क्या नागा साधु विवाह कर सकते हैं ?
नहीं नागा साधु शादी नहीं कर सकते। नागा साधु अपने जीवन भर ब्रह्मचार का पालन करते हैं। नागा साधुओं को कभी भी कपड़े नहीं पहनने होते।

अघोरी और नागा साधु में क्या अंतर है?
अघोरी और नागा साधु दोनों ही शिव के उपासक होते हैं, लेकिन इनके साधना के तरीके अलग-अलग होते हैं. अघोरी साधु तंत्र साधना करते हैं, जबकि नागा साधु भक्ति में लीन रहते हैं। अघोरी साधु श्मशान में रहकर साधना करते हैं, जबकि नागा साधु अखाड़ों से जुड़े होते हैं।
अघोरी साधुओं को शिव का पांचवां अवतार माना जाता है, जबकि नागा साधुओं के जनक आदि गुरु शंकराचार्य माने जाते हैं।

महिला नागा साधु कैसी होती है?
महिला नागा साधुएं वस्त्रधारी होती हैं. वे गेरुए रंग का एक कपड़ा पहनती हैं, जिसे गंती कहते हैं।

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