Last sermon of Srila Prabhupada : श्री कृष्ण चेतना आंदोलन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद के अंतिम उपदेश में भक्ति, समर्पण और निरंतर प्रयास पर जोर दिया गया था। उन्होंने अपने शिष्यों से कृष्ण भावनामृत के सिद्धांतों को दृढ़ता से जारी रखने, और नए अनुयायियों को लाने और उन्हें शिक्षित करने का आह्वान किया।
श्रील प्रभुपाद ने अपने शिष्यों को समझाया कि कृष्ण भावनामृत के सिद्धांतों पर दृढ़ता से आगे बढ़ने, और नए अनुयायियों को लाने और शिक्षित करने के लिए, वे लगातार प्रयास करें. उन्होंने कहा कि भक्ति वृक्ष के माध्यम से, नए सैनिकों को लाया जा सकता है और उनकी मानसिक स्थिति को विकसित किया जा सकता है ताकि वे कृष्ण चेतना आंदोलन को पूरी तरह से समझ सकें। उन्होंने अपने शिष्यों को भगवान के प्रति अपना समर्पण जारी रखने और निरंतर प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि कृष्ण भावनामृत में समर्पण और निरंतर प्रयास आवश्यक हैं, और इन सिद्धांतों का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक प्रगति कर सकता है।
आइए जानते हैं कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय क्या उपदेश दिए!
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प्रभुपाद के अंतिम उपदेश – श्रीकृष्ण भक्तों के लिए अमर संदेश | Hindi Blog
A. C. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, जिन्होंने ISKCON की स्थापना कर श्रीकृष्ण भक्ति को वैश्विक आंदोलन बना दिया, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में कुछ ऐसे अमूल्य उपदेश दिए जो आज भी उनके अनुयायियों के लिए जीवन का मार्गदर्शन हैं। वृंदावन में अपने देह त्याग से पहले प्रभुपाद ने जो शब्द कहे, वे केवल शिष्यों के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
- “मेरी पुस्तकों में सब कुछ है : प्रभुपाद ने कहा: “Everything is in my books. उनका मानना था कि उन्होंने श्रीकृष्ण के सच्चे ज्ञान को अपने ग्रंथों में सजीव कर दिया है – श्रीमद्भागवतम, भगवद्गीता यथारूप, और चैतन्य चरितामृत जैसे ग्रंथों के माध्यम से। उनका यह संदेश था कि यदि कोई भक्त उनकी पुस्तकों को पढ़े और उस ज्ञान का अनुसरण करे, तो वह निश्चित ही भगवान की शरण में पहुँच सकता है।
- “घर-घर जाकर कृष्ण कथा कहो” : Go house to house and tell people about Krishna : प्रभुपाद ने प्रचार को अपना सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना। वे चाहते थे कि उनके शिष्य संकीर्तन करें, भक्ति का संदेश फैलाएं और हरिनाम संकीर्तन को जीवन का आधार बनाएं। उनके लिए प्रचार केवल एक सेवा नहीं, बल्कि भगवत आज्ञा का पालन था।
- “आपस में सहयोग करो – झगड़ा मत करो” “You all must cooperate. No fighting. Krishna will help you if you remain united.” प्रभुपाद ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि संस्था को आगे बढ़ाने के लिए एकता, सहयोग, और दया भाव आवश्यक हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मतभेद संगठन को कमजोर कर सकते हैं।
- “मैं कभी नहीं मरता” – प्रभुपाद का अमर संदेश “I will never die. I will live forever in my books. : यह वाक्य हजारों शिष्यों को संबल देता है। प्रभुपाद ने यह स्पष्ट किया कि उनका शरीर न भी रहे, लेकिन उनके उपदेश, उनका ज्ञान और उनकी चेतना उनकी पुस्तकों और संस्थान में जीवित रहेंगे।
- अंतिम क्षणों में प्रभुपाद की स्थिति : 1977 में, जब प्रभुपाद वृंदावन में अपने अंतिम समय की ओर बढ़ रहे थे, तब वे अत्यंत दुर्बल थे लेकिन कृष्ण नाम में पूर्णतः लीन थे। उनके चारों ओर उनके प्रिय शिष्य कीर्तन कर रहे थे। उन्होंने कहा:
- “कृष्ण मेरा रक्षक है।”
- “नाम जपते रहो।”
- “सब कुछ भगवान की इच्छा से होता है।”
- प्रभुपाद का उत्तराधिकारी कौन? जब उनसे पूछा गया कि आगे संस्था कौन चलाएगा, तो उन्होंने उत्तर दिया: सब कुछ मेरी पुस्तकों में है। जो पढ़ेगा, वही नेतृत्व करेगा।
इसका सीधा संकेत था कि व्यक्ति नहीं, सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष: प्रभुपाद के उपदेश – एक अमूल्य धरोहर
स्वामी प्रभुपाद के अंतिम शब्द केवल शिष्यों के लिए निर्देश नहीं थे, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए आध्यात्मिक जागृति का आह्वान थे। उन्होंने जो कहा, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1977 में था।
यदि हम चाहते हैं कि हमारा जीवन सफल हो, तो हमें भी प्रभुपाद के अंतिम उपदेशों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए:
- भक्ति में स्थिरता
- ज्ञान का अध्ययन
- सेवा व प्रचार
- एकता व विनम्रता
- नामस्मरण
क्या आपने कभी प्रभुपाद की कोई पुस्तक पढ़ी है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें।
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