मुन्ना भैया इस दुनिया से जा चुके हैं, कालीन भैया कोमा में हैं और गुड्डू भैया मिर्जापुर की गद्दी पर बैठ चुके हैं. लेकिन पूर्वांचल का बाहुबली कौन होगा, इस पर लड़ाई अब भी जारी है. शरद शुक्ला को भी पूर्वांचल की गद्दी चाहिए और शत्रुघन को भी यही चाहिए. इस बीच राजनीति का अलग खेल चल रहा है, पंडित जी पर एसएसपी की मौत का केस चल रहा है, वहीं डिंपी और रॉबिन की लव स्टोरी भी आगे बढ़ती है. लेकिन गद्दी पर कौन बैठेगा, कालीन भैया का क्या होगा, ये सब जानने के लिए आपको मिर्जापुर का सीजन 3 देखना पड़ेगा.
मुन्ना भैया की कमी खलती है-
इस सीरीज को देखने के लिए लोग खासतौर पर छुट्टी लेते हैं, लेकिन सीरीज थोड़ी खींची हुई लगती है, भौकाल वाले सीन और वॉयलेंस कम है. मुन्ना भैया की कमी खलती है और कालीन भैया भी ज्यादा भौकाल नहीं मचाते हैं. कुछ एक सीन हैं जो मजेदार हैं लेकिन ऐसे सीन कम हैं, और एक-दो ही ऐसे सीन हैं जो आपको हिला डालते हैं.
मिर्जापुर सीरीज3 अच्छी है लेकिन शानदार नहीं है. मिर्जापुर के फैंस को अच्छी तो लगेगी लेकिन उन्हें भी भौकाल में कमी जरूर महसूस होगी. कई सीक्वेंस जरूरत से ज्यादा खींचे गए हैं, गुड्डू भैया के कंधों पर पूरी जिम्मेदारी है. वो जब जब आते हैं मजा आ जाता है, लेकिन 10 एपिसोड को गुड्डू भैया अकेले तो खींच नहीं सकते थे.
गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर ने शो को डायरेक्ट किया है और उनका डायरेक्शन ठीक है, उनसे बेहतर की उम्मीद थी. मिर्जापुर जैसी सीरीज में भौकाल बढ़ना चाहिए था, लेकिन यहां कम हुआ और इसका वजह कहीं ना कहीं डायरेक्टर हैं.
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